महादेवी वर्मा जी

महादेवी वर्मा(सन् 1907-1987 ई.)


महादेवी वर्मा (सन् 1907-1987 ई.)
जीवन-परिचय- महादेवी वर्मा 'पीड़ा की गायिका' से रूप में सुुप्रसिद्ध छायावादी कवयित्री होने के साथ एक उत्‍कृष्‍ट गद्य-लेखिका भी थी। गुलाबराय- जैसे शीर्षस्‍तरीय गद्यकार ने लिखा है- ''मैं गद्य में महादेवी का लोहा मान्‍ता हूँ।'' महादेवी वर्मा का जन्‍म फर्रुखाबाद के एक सम्‍पन्न परिवार में सन् 1907 ई. में हुआ था। इन्‍दौर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्‍त करने के बाद इन्‍होंने का्रस्‍थवेट गर्ल्‍स कॉलेज, इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्‍त की। इनका विवाह स्‍वरूप नारायण वर्मा से ग्‍यारह वर्ष की अल्‍प आयु में ही हो गया थ ससुर जी के विशेध के कारण इनकी शिक्षा में व्‍यवधान आ गया, परन्‍तु उनके निधन के पश्‍चात् इन्‍होंने पुन: अध्‍ययन प्रारम्‍भ किया और प्रयाग विश्‍वविद्यालय से संस्‍कृत विषय में एम.ए् की परी खा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वे 1965 ई. तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या के रूप में कार्यरत रहीं। इन्‍हें उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्‍या भी मनोनीत किया गया। इनका देहावसान 11 सितम्‍बर 1987 ई. को प्रयाग में हुआ। 


साहित्यिक परिचय- माहदेवी वर्मा के गद्य का आरम्भिक रूप इनकी काव्‍य-कृतियों की भूमिकाओं में देखने को मिलता है। ये मुख्‍यत: कवयित्री ही थीं, फिर भी गद्य के क्षेत्र में उत्‍कृश्‍ट कोटि के संस्‍मरण, रेखचित्र, निबन्‍ध एवं आलोचनाऍं लिखीं। रहस्‍यवाद एवं प्रकृतिवाद पर आधारित इनका छायावादी साहित्‍य, हिन्‍दी साहित्‍य की अमूल्‍य विरासत के रूप में स्‍वीकार किया जाता हेै। विरह की गायिका के र्रूप में महादेवी जी को 'आधुनिक मीरा' कहा जाता है। महादेवी जी के कुशल सम्‍पादन के परिणामस्‍वरूप ही 'चॉंद' पत्रिका नारी-जगत् की सर्वश्रेष्‍ठ पत्रिका बन सकी। इन्‍होंने साहित्‍य के प्रचार-प्रसार हेतु 'साहित्‍यकार-संसद' नामक संस्‍था की स्‍थापना भी की। इन्‍हें 'नीरजा' काव्‍य-रचना पर 'सेकसरिया पुरस्‍कार' और 'यामा' कविता-संग्रह पर 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' से सम्‍मानित किया गया कुमाऊँ विश्‍वविद्यालय ने इन्‍हें 'डी.लिट्.' की मानद उपाधि से विभूषित किया। भारत सरकार से 'पद्मविभूषण' भी इन्‍हें प्राप्‍त हुआ था लेकिन हिन्‍दी के प्रचार-प्रसार के प्रति सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति से व्‍यथित होकर महादेवी जी ने इस अलजंकरण को वापस कर दिया था। 'ज्ञानपीठ पुरस्‍कार' इन्‍हें 1983 ई. में दिया गया था।

कृतियॉं महादेवी वर्मा की प्रमुख है

  • निबन्‍ध-संग्रह - खणदा, श्रृंखला की कडि़यॉं, अबला और सबला, साहित्‍यकार की आस्‍थ, 
  • संस्‍मरण और रेखाचित्र- स्‍मृति की रेखाऍं, अतीत के चलचित्र पथ के साथी, मेरा परिवार 
  • म्‍पादन चॉंद (पत्रिका) और आधुनिक कवि 
  • आलोचना- हिन्‍दी का विवेचनात्‍मक गद्य , यामा, दीपशिखा, 
  • काव्‍य रचनाऍं- नीहार, नीरजा, रश्मि, सान्‍ध्‍यगीत, दीप‍शिखा, यामा


भाष -शैली- महादेवी जी की काव्‍य-भाषा अत्‍यन्‍त, मसर्थ एवं सशक्‍त है। संस्‍कृतनिष्‍ठता इनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है। इनकी रचनाओं में उर्दू और अंग्रेजी के प्रचालित शब्‍दों का प्रयोग भी हुआ है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी इनकी रचनाओं में हुआ है जिससे इनकी भाषा में लाक-जीवन की जीवन्‍तता का समावेशहो गया है। लक्षणएवं व्‍यंजना की प्रधानता इनकी भाषाा की महत्तवपूर्ण विशेषता है। इस प्रकार महादेवी जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक भाषा है।
इनकी रचनाओं में चित्रोपम 
  • वर्णनात्‍मक शेैली
  • विवेचनात्‍म्‍क शैली
  • भावात्‍म्‍क शेैैली 
  • व्‍यंग्‍यात्‍मक शैली 
  • आलंकारिक शैली 
  • सूक्तिशैली 
  • उद्धरण शैली

भाषा- 

  • संस्‍कृतनिष्‍ठ खड़ीबोली।

लेखक- महादवी वर्मा जी शुक्‍लोत्तर-युग की लेखिका है।

22 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्तों क्या आप भी सफल होना चाहते हैं और सफल व्यक्तियों की बायोग्राफी पढ़ना चाहते हैं तो आप इस वेबसाइट पर जाकर एक बार जरूर पढ़ें.=Click Here

    जवाब देंहटाएं
  2. दोस्तों क्या आप भी सफल होना चाहते हैं और सफल व्यक्तियों की बायोग्राफी पढ़ना चाहते हैं तो आप इस वेबसाइट पर जाकर एक बार जरूर पढ़ें.=Click Here

    जवाब देंहटाएं

Blogger द्वारा संचालित.