भगवतशरण उपाध्याय ( सन् 1910-1982 )
जीवन-परिचय - पुरातत्व कला के पण्डित, भारतीय संस्कृति के प्रचारक, पाण्डित्यपूर्ण लेखक डॉ.
भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन्
अक्टूबर 1910 ई0 में बलिया जिले के उजियारपुर गॉंव में हुआ था। उ
नके पिता का नाम पंडित रघुनंदन उपाध्याय और माँ का नाम महादेवी था। उनके पिता बलिया में अच्छे वक़ील थे। उपाध्याय जी की प्रारंभिक शिक्षा बलिया में ही हुई और 1927 में बलिया से मैट्रिक पास करने के बाद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और लखनऊ विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर किया. इतिहास का अध्ययन और इतिहास-लेखन धीरे-धीरे उनके जीवन के अंग बन गये। एम0ए0 के बाद वापस पटना लौटकर उन्होंने प्रसिद्ध इतिहासकार काशीप्रसाद जयसवाल के साथ इतिहास संबंधी शोधकार्य प्रारंभ कर दिया। इसके बाद उन्होंने काशी विश्वविद्यालय की अनुसंधान पत्रिका का संपादन भी किया। 1940 में लखनऊ संग्रहालय के पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष बने, और फिर 1943 में पिलानी के बिड़ला कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक नियुक्त हुए। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ किया। विदेश यात्राएँ भी बहुत सारी कीं. अब तक उनकी ख्याति प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता और प्राचीन सभ्यता-संस्कृति के विद्वान के रूप में होने लगी थी। 1952 में चीन में होने वाले विश्व शांति सम्मेलन में भी भारत की ओर से गए शिष्टमंडल के वे एक प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने अमरीका, फ़्रांस, जर्मन, पेरिस, कैनबरा आदि स्थानों पर भी शिष्टमंडल के सदस्य के रूप में यात्राएँ की। वे नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की ओर से प्रकाशित हिंदी विश्वकोश के संपादक भी रहे. अंत में वे उज्जैन में ही बस गये। 1981 में भारत सरकार ने उन्हें मॉरीशस में भारत का राजदूत नियुक्त किया, और वहीं 12 अगस्त 1982 को हृदय गति रुकने से उनका देहांत हो गया। जीवन के अंतिम समय में वे मॉरीशस में भारत के राजदूत थे।
उपाध्याय जी ने क्रमश: 'पुरातत्व विभाग', 'प्रयाग संग्रहालय', 'लखनउ संग्रहालय' के अध्यक्ष तथा पिलानी में 'बिड़ला महाविद्यालय' में प्राध्यापक-पद पर कार्य किया। तत्पश्चात् विक्रम विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास-विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर कार्य करते हुए वहीं से अवकाश ग्रहण किया।
कृतियॉ- उपाध्याय जी की कुछ प्रमुख रचनाऍ
- आलोचनात्मक ग्रन्थ - विश्व साहित्यच की रूपरेखा, साहित्य और कला, इतिहास के पन्नों पर, विश्व को एशिया की देन, मन्दिर और भवन आदि।
- यात्रा-साहित्य - कलकत्ता से पीकिंग
- अन्य ग्रन्थ - ठूॅठा आम, सागर की लहरों पर कुछ फीचर, कुछ एकांकी, इतिहास साक्षी है, इण्डियन इन कालिदास, अजन्ता आदि।
भाषा-शैली -
भाषा - डॉ0 उपाध्याय ने शुद्ध, परिष्कृत और परिमार्जित भाषा का प्रयोग किया है। भाषा का लालित्य इनके गम्भीर चिन्तन और विवेचन को रोचक बनाये रखता है। भाषा में प्रवाह और बोध्गम्यता की निराली छटा है। इस प्रकार इनकी भाषा में सजीवता और चिन्तन की गहराई सर्वत्र विद्यमान है।
शैली-
- विवेचनात्मक
- वर्णनात्मक
- भावात्मक
नोट -
अजन्ता की प्रसिद्ध गुफाऍ महाराष्ट्र राज्य में स्थित है।
अजन्ता की गुफा में बनाए गए चित्र बन्दरों, हाथियों, हिरनों, राजा, कंगले, विलासी और भिक्षु, नर और नारी एवं मनुष्य और पशुओं की कहानियों से सम्बन्धित है।
It's really help me
जवाब देंहटाएंBest
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी है मैं भी इनके पर एक आर्टिकल लिखा हु https://goodglo.com/doctor-bhagwat-sharan-upadhyay-kaun-hai-bhagwat-ji-ka-jeevan-parichay/
जवाब देंहटाएं