Biography of Sardar Vallabhbhai Patel

Sardar Vallabhbhai Patel 
वल्लभभाई पटेल (31अक्टूबर 1875 – 15 दिसम्बर 1950)


सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है। 31 अक्तूबर को सरदार पटेल का जन्म हुआ था। उन्हें भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। सरदार पटेल का जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा है। उन्होंने आजाद भारत में बिखरी हुई रियासतों का विलय करते हुए एकता के सूत्र में बाधा। इस कारण 31 अक्तूबर के दिन प्रतिवर्ष उनकी जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाते हैं।

सरदार वल्लभ भाई पटेल देश के पहले उप प्रधानमंत्री थे। वह त्याग और बलिदान की मिसाल भी थे। अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुए भारत में सरदार पटेल को देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जाने लगा था। कांग्रेस पार्टी में सभी चाहते थे सरदार पटेल प्रधानमंत्री बने लेकिन दावेदारी में जवाहर लाल नेहरू का भी नाम था। महात्मा गांधी के कहने पर सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री की रेस से अपना नाम वापस ले लिया।

लौह पुरुष पटेल काफी दूरदर्शी थे, उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को भारत और चीन के रिश्ते पर पहले ही आगाह कर दिया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के मौके पर उनके जीवन से जुड़े रोचक किस्सों के बारे में जानिए, जिन्होंने उन्हें लौह पुरुष बना दिया।

जीवन परिचय

वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (31अक्टूबर 1875 – 15 दिसम्बर 1950) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता तथा राजनेता थे। उन्हें लोग सरदार पटेल के नाम जानते हैं। 'सरदार' का अर्थ है "प्रमुख"। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत में देशी रियसतों के एकीकरण की महान चुनौती को उन्होंने सफलतापूर्वक हल किया। 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।



पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार)] जाति में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया।

सरदार पटेल का परिचय

गुजरात के खेड़ा जिले में 31 अक्तूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ था। एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले पटेल ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर भविष्य में खास बन गया। वह आजादी की जंग का हिस्सा बने। इस दौरान उन्होंने शराब, छुआछूत और स्त्री अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। हिंदू मुस्लिम एकता को बनाए रखने का प्रयास जारी रखा और आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए।

पटेल बन सकते थे पहले प्रधानमंत्री

जब भारत को आजादी मिली तो देशवासी अपनी नई सरकार बनाने के लिए तैयार थे। पूरे देश की निगाहें कांग्रेस के नए अध्यक्ष के नाम पर टिकी थीं। माना जा रहा था कांग्रेस नया अध्यक्ष ही भारत का पहला प्रधानमंत्री होगा। सरदार पटेल की लोकप्रियता के चलते कांग्रेस कमेटी ने नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया और पटेल पूर्ण बहुमत से पार्टी के अध्यक्ष बन गए लेकिन पार्टी में विच्छेद की संभावना को खत्म करने के लिए गांधी जी ने सरदार पटेल को प्रधानमंत्री पद से पीछे हटने को कहा। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने गांधी जी की बात का मान रखते हुए अपना नामांकन वापस ले लिया।



रियासतों का भारतीय संघ में विलय

पटेल को देश का पहला उप प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्हें कई और जिम्मेदारियां सौंपी गईं। उस समय पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती देसी रियासतों का भारत में विलय था। छोटे बड़े राजाओं, नवाबों और रजवाड़े खत्म करते हुए उन्हें भारत सरकार के अधीन करना आसान नहीं था लेकिन बिना किसी जंग के सरदार पटेल ने 562 रियासतों का भारत संघ में विलय कराया।

खेड़ा संघर्ष

स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।



बारडोली सत्याग्रह

बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया । उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया।


इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

आजादी के बाद

यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया। किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।

गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद स्टेट के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन १९५० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।

देसी राज्यों (रियासतों) का एकीकरण
मुख्य लेख: भारत का राजनीतिक एकीकरण

जब ‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल के सामने हैदराबाद के निजाम को टेकने पड़े थे घुटने

स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देसी रियासतें थीं। इनका क्षेत्रफल भारत का 40 प्रतिशत था। सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वह पाकिस्तान के समीप नहीं थी। वहाँ के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गयी। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ भी भारत में मिल गया। फरवरी 1948 में वहाँ जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा। हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। पटेल चिंतित हो उठे। अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गयी। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या है। कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गये और अलगाववादी ताकतों के कारण कश्मीर की समस्या दिनोदिन बढ़ती गयी। 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री मोदीजी और गृहमंत्री अमित शाह जी के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया और सरदार पटेल का अखण्ड भारत बनाने का स्वप्न साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केन्द्र शासित प्रेदश अस्तित्व में आये। अब जम्मू-कश्मीर केन्द्र के अधीन रहेगा और भारत के सभी कानून वहाँ लागू होंगे। पटेल जी को कृतज्ञ राष्ट्र की यह सच्ची श्रद्धांजलि है।

गांधी, नेहरू और पटेल

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" पं॰ नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।



देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना। विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े। वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था।

जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"




यद्यपि विदेश विभाग पं॰ नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परन्तु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं॰ नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा "क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।" नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।

गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता।

Spare a thought for Sardar Patel’s house

सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे। अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे।

लेखन कार्य एवं प्रकाशित पुस्तकें

हिन्दी में
"एकता की प्रतिमा"
  1. सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (1945-1950) - दो खंडों में, संपादक- वी० शंकर, प्रथम संस्करण-1976, (नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
  2. सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) - दो खंडों में, संपादक- गणेश मा० नांदुरकर, प्रथम संस्करण-1981 (वितरक- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
  3. भारत विभाजन (प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  4. गांधी, नेहरू, सुभाष
  5. आर्थिक एवं विदेश नीति
  6. मुसलमान और शरणार्थी
  7. कश्मीर और हैदराबाद

अंग्रेजी में
  • Sardar Patel's correspondence, 1945-50. (In 10 Volumes), Edited by Durga Das [Navajivan Pub. House, Ahmedabad.]
  • The Collected Works of Sardar Vallabhbhai Patel (In 15 Volumes), Ed. By Dr. P.N. Chopra & Prabha Chopra (Konark Publishers PVT LTD, Delhi)

पटेल का सम्मान

  • अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा गया है।
  • गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय
  • सन १९९१ में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित

Sardar Vallabhbhai Patel: हर साल 15 दिसंबर को भारत के पहले गृहमंत्री (Home Minister), उप-प्रधानमंत्री (Deputy Prime Minister) सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की पुण्यतिथि (Death Anniversary) मनाई जाती है. उनको भारत का लौह पुरुष (Iron man) कहा जाता है. लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को याद करने के बहुत से कारण है लेकिन उनमें सबसे प्रमुख है आज़ाद भारत को एकजुट करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका.
भारत के Iron Man


सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था. एक गृहमंत्री के तौर पर उन्होंने देश की करीब 562 छोटी-बड़ी देसी रियासतों का भारत में विलय कराया था. ऐसा कर के उन्होंने भारतीय एकता के निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई थी.
सरदार वल्लभभाई पटेल को नवीन भारत का निर्माता भी कहा जाता है. उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसी उपाधि से नवाजा गया था. सरदार पटेल स्वभाव से शांत, उदार और नरम दिल के इंसान थे. उन्हें महान और प्रेरणादायी विचारों का धनी माना जाता है.

आज उनकी पुण्यतिथि पर जानते है उनके बारे में कुछ रोचक बातें
1.सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ. लंदन जाकर उन्होंने बैरिस्टर (Barister) की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे. महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था.

2.स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Satyagrah) में था. उन्होंने 1928 में हुए बारदोली सत्याग्रह (Bardoli Satyagrah) में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व किया.

3. सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री थे.

4. आज़ादी के बाद देसी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करवा कर भारतीय एकता का निर्माण किया है.

5. महात्मा गांधी ने सरदार को लौह पुरुष की उपाधि दी थी.

6. गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर डैम (Sardar Sarovar Dam) के सामने सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर (597 फीट) ऊंची लौह प्रतिमा (Statue of Unity) का निर्माण किया गया है. ये दुनिया का सबसे बड़ा स्टेचू है. इसको 31 अक्टूबर 2018 को देश के लिए खोल दिया गया था.

7. यह सरदार पटेल का ही विज़न था कि भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (Indian Civil Services) देश को एक रखने में अहम भूमिका निभाएगी. उन्होंने सिविल सर्विसेज को देश का स्टील फ्रेम (Steel Frame) कहा था.

8. बारदोली सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की थी.

9. किसी भी देश का आधार उसकी एकता और अखंडता में निहित होता है और सरदार पटेल देश की एकता के सूत्रधार थे. इसी वजह से उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day) के तौर पर मनाया जाता है.

10. सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था. 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ (Bharat Ratna) से सम्मानित किया गया था.



भारत के भू राजनीतिक एकीकरण के सूत्रधार ‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की आज 144वीं जयंती है। आजादी के बाद बंटवारे के समय भारतीय रियासतों के विलय से स्वतंत्र भारत को नए रूप में गढ़ने वाले पटेल भारत के सरदार के रूप में जाने जाते हैं। वह अपने अदम्य साहस व प्रखर व्यक्तित्व के कारण ही भारत को एक धागे में पिरोने में कामयाब हो सके।


किसान परिवार में जन्मे पटेल ने लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की, लेकिन मन मस्तिष्क पर महात्मा गांधी के विचारों का ऐसा असर हुआ कि स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने को समर्पित कर दिया। देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाने और उसे एक सूत्र में पिरोने में उनके योगदान के लिए 2014 से हर साल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कश्मीर पर नेहरू नीति से नाखुश

कश्मीर छोड़ देश की सभी छोटी-बड़ी रियासतों के विलय का जिम्मा पटेल उठा रहे थे। कश्मीर मसले को उन्होंने कभी स्वतंत्र रूप से डील नहीं किया। कश्मीर का मसला जवाहर लाल नेहरू के पास था। कश्मीर को लेकर भारत के अंतिम वॉयसराय माउंटबेटन का मानना था कि अब यह विवाद दोनों देशों की आपसी बातचीत से नहीं सुलझने वाला है। इसलिए भारत संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा करे। नेहरू इसके लिए तैयार हो गए। वहीं पटेल को इस पर आपत्ति थी लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। संघर्षविराम को मान लेने की वजह से जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया था और इससे भी पटेल खुश नहीं थे। अगर इस रियासत के विलय के जिम्मा पटेल पर होता तो इसकी ऐसी हालत नहीं होती। मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर इस ऐतिहासिक भूल का सुधार कर दिया है।

562 रियासतों का विलय कराने वाले सरदार

जब भारत आजाद हुआ तो उस समय देश में छोटी-बड़ी 562 रियासतें थीं। इन देशी रियासतों का स्वतंत्र शासन में यकीन था और यह सोच ही सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उप प्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। ब्रिटिश सरकार ने इन रियासतों को छूट दी थी कि वे स्वेच्छा से भारत या पाकिस्तान के साथ जा सकते हैं। या फिर स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाए रख सकते हैं। यह अंग्रेजों की कुटिल चाल थी। उधर मोहम्मद अली जिन्ना इन रियासतों को पाकिस्तान में मिलाने के लिए प्रलोभन दे रहे थे। ऐसी विषम परिस्थिति में पटेल ने तबके वरिष्ठ नौकरशाह वीपी मेनन के साथ मिलकर नवाबों व राजाओं से बातचीत शुरू की। पटेल ने रियासतों के समक्ष प्रिवी पर्सेज के माध्यम से आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव रखा। परिणाम हुआ कि आजादी के दिन तक अधिकतर रियासतों ने भारत में शामिल होने का निर्णय ले लिया। बच गए तो जूनागढ़, हैदराबाद व जम्मू-कश्मीर।

त्रावणकोर की कहानी


त्रावणकोर के दीवान ने घोषणा कर रखी थी कि महाराजा एक अलग देश बनाएंगे। महाराजा को अपने पास से एक बंदरगाह व यूरेनियम के भंडार छिन जाने का डर था। जिन्ना ने भी महाराजा से स्वतंत्र रिश्ते रखने का अनुरोध किया। इसी दौरान एक युवक ने त्रावणकोर के दीवान के चेहरे पर छुरे से वार कर दिया। डरे महाराजा 14 अगस्त को विलय पर राजी हो गए।

जूनागढ़ के नवाब की ना नुकुर


जूनागढ़ के नवाब महावत खान की रियासत का अधिकतर हिस्सा हिंदुओं का था। जिन्ना और मुस्लिम लीग के इशारे अल्लाबख्श को अपदस्थ करके यहां शाहनवाज भुट्टो को दीवान बनाया गया। जिन्ना नेहरू के साथ जूनागढ़ के बहाने कश्मीर की सौदेबाजी करना चाहते थे। 14 अगस्त, 1947 को महावत खान ने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का एलान किया, तब सरदार पटेल उखड़ गए। उन्होंने जूनागढ़ में सेना भेज दिया। जूनागढ़ की जनता ने भी नवाब का साथ नही दिया। इस बीच बढ़ते आंदोलन को देखकर नवाब महावत खान कराची भाग गया। आखिरकार नंवबर, 1947 के पहले सप्ताह में शाहनवाज भुट्टो ने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को खारिज कर उसके हिंदुस्तान में विलय की घोषणा कर दी। इस तरह 20 फरवरी, 1948 को जूनागढ़ देश का हिस्सा बन गया।

हैदराबाद के निजाम को घुटने के बल आना पड़ा


हैदराबाद देश की सबसे बड़ी रियासत थी। उसका क्षेत्रफल इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी बड़ा था। हैदराबाद के निजाम अली खान आसिफ ने फैसला किया कि उनका रजवाड़ा न तो पाकिस्तान और न ही भारत में शामिल होगा। हैदराबाद में निजाम और सेना में वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम थे लेकिन वहां की लगभग 85 प्रतिशत आबादी हिंदू थी। निजाम ने 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया और पाकिस्तान से हथियार खरीदने की कोशिश में लग गए। तब पटेल ने ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य कार्रवाई का फैसला किया। 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया। 17 सितंबर को हैदराबाद की सेना ने हथियार डाल दिए।

लक्षद्वीप समूह पर भारतीय ध्वज देख


पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए, लेकिन उन्हें वापस लौटना पड़ा।

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