Jannayak Karpoori Thakur Bharat Ratna

बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज जयंती है। इस मौके पर बिहार के के साथ-साथ देश भर के नेता जन नायक को याद कर रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर को गरीबों का मसीहा माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर बेहद गरीब परिवार से आते थे। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहे। उनके बारे में कहा जाता है कि सत्ता मिलने के बावजूद उन्होंने कभी भी उसका दुरुपयोग नहीं किया। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। 

क्रर्पूरी ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो रिश्ते में उनके एक बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए। उन्होंने मुख्यमंत्री साले से नौकरी के लिए सिफारिश लगवाने कहा। बहनोई की बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उन्होंने अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा कि जाइए और एक उस्तरा आदि खरीद लीजिए। अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।

कर्पूरी ठाकुर की सादगी और ईमानदारी का ये एकमात्र किस्सा नहीं है। मौजूदा वक्त में नेता सत्ता मिलते ही अपने और परिवार के लिए धन-संपत्ति जुटाने के लिए नए-नए तरकीब ढूंढने लगता है। वहीं, स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार दशकों तक विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने एक मकान तक नहीं बनवाया।

बेटे की बीमारी में भी नहीं ली सरकार की मदद

जयंत जिज्ञासु की किताब में कर्पूरी ठाकुर की खुद्दारी के एक और प्रसंग का जिक्र है। कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए चयन हो गया था। इस बीच उसकी तबीयत खराब हो गयी। उसे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि दिल की बीमारी है। ऑपरेशन के लिए मोटी रकम की जरूरत थी। ये बात जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पता चली तो उन्होंने अपने एक प्रतिनिधि को भेजा। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर के बेटे को राम मनोहर लोहिया अस्पताल से निकाल कर एम्स में भर्ती कराया गया।

इसके बाद इंदिरा गांधी खुद अस्पताल गई और कहा कि वह सरकारी खर्च पर कर्पूरी ठाकुर के बेटे का इलाज अमेरिका में करवाएंगी। कर्पूरी ठाकुर को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि मर जाएंगे, लेकिन बेटे का इलाज सरकारी खर्च से नहीं करायेंगे। बाद में जयप्रकाश नारायण ने पैसे का बंदोबस्त कराया और न्यूजीलैंड भेज कर उनके बेटे का इलाज कराया।


गांव में झोपड़ी देख कर रो पड़े थे यूपी के नेता

सत्तर के दशक में बिहार सरकार विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए पटना में सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। जब कर्पूरी ठाकुर को आवास के लिए जमीन लेने के लिए कहा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया। इसपर एक विधायक ने उनसे कहा था कि आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा समस्तीपुर स्थित उनके गांव पितौंझिया गए तो पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे।

बिहार के नाई परिवार में जन्में ठाकुर अखिल भारतीय छात्र संघ में रहे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण व समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे। बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था कराने की पहल की थी। भारत छोड़ो आंदोलन के समय कर्पूरी ठाकुर ने करीब ढाई साल जेल में बिताया। जनता के प्रति उनके सेवा भाव और लोकप्रियता के चलते उन्हें जन नायक कहा जाता है।


Karpoori Thakur Bharat Ratna बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने की घोषणा के साथ ही सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जननायक कर्पूरी ठाकुर कौन हैं? वह बिहार में कहां जन्मे और उनका सियासी सफर कैसा रहा? उन्होंने अपने जीवनकाल में किस तरह की राजनीति को आगे बढ़ाया?


Karpoori Thakur : कौन हैं भारत रत्न से नवाजे जा रहे कर्पूरी ठाकुर?

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान मिलेगा। केंद्र सरकार की ओर से इसकी घोषणा कर दी गई है। इधर, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी है। पीएम ने जहां कर्पूरी ठाकुर को सामाजिक न्याय का पथप्रदर्शक बताया है। वहीं मुख्यमंत्री ने इस फैसले पर खुशी जाहिर की है। ऐसे में बिहार की पृष्ठभूमि के कम परिचित लोगों के मन में सवाल उठेगा कि कर्पूरी ठाकुर कौन हैं? आइए बताते हैं आपके ऐसे ही सवालों के जवाब...

जननायक बिहार के दो बार मुख्यमंत्री बने

कर्पूरी ठाकुर को जननायक कहकर संबोधित किया जाता है। उनका जन्म समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव में नाई समाज में 24 जनवरी 1924 को हुआ था। वह साल 1952 में पहली विधायक चुने जाने के बाद आजीवन वह किसी न किसी सदन के सदस्य रहे। 1970-79 के बीच बिहार के दो-दो बार मुख्यमंत्री और बाद में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। अपने जीवनकाल में कर्पूरी ठाकुर के इतने अहम पदों पर रहने बावजूद उनके पास न तो घर था और ना ही कोई गाड़ी। यहां तक कि उनके पास अपनी पैतृक जमीन भी नहीं थे। राजनीति में ईमानदारी, सज्जनता एवं लोकप्रियता ने कर्पूरी को जननायक बना दिया था। कर्पूरी का निधन 64 वर्ष की उम्र में 17 फरवरी 1988 को हुआ था। कर्पूरी ने आजीवन कांग्रेस के विरुद्ध राजनीति की थी। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार करने में कामयाब नहीं हो पाई। कर्पूरी सर्वोच्च पद पर पिछड़े समाज के व्यक्ति को देखना चाहते थे। कर्पूरी राजनीति में परिवारवाद के प्रबल विरोधी थे। ठाकुन ने जीवित रहने तक उन्होंने अपने परिवार के किसी सदस्य को राजनीति में नहीं आने दिया।

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के क्या हैं सियासी मायने?

देश में कुछ दिनों बाद लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है। इससे पहले केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की है। ऐसे में इस फैसले को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।

केंद्र सरकार का यह फैसला कई मायनों में अहम है। कारण कि यह वर्ष कर्पूरी ठाकुर का जन्मशताब्दी वर्ष है। सभी दल अपने-अपने हिसाब से उनकी जयंती मनाने के लिए समारोह-कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं।

जानकार मानते हैं कि देश के सभी दल, बल्कि खासतौर पर बिहार की राजनीतिक पार्टियां खुद को कर्पूरी ठाकुर की सियासी जमीन और प्रभाव के करीब दिखाने की कोशिश में हैं। चुनावों के नजदीक आने पर ऐसा होना स्वाभाविक भी है।

इस क्रम में बुधवार को भाजपा ने पटना के साथ दिल्ली में भी बड़ा कार्यक्रम रखा है। विज्ञान भवन में हो रहे इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय गृहमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह होंगे।

माना जा रहा है कि कर्पूरी के सहारे बिहार में भाजपा ने अपनी चुनावी लाइन को स्पष्ट करने की दिशा में बड़ा संकेत दिया है। इधर, बिहार में पहले से गठबंधन सरकार चला रहे राजद और जदयू भी बड़े कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं।

जदयू ने पहले ही कर्पूरी के पैतृक गांव एवं पटना में चार दिनों के कार्यक्रम की तैयारी कर रखी है।

बिहार में इन कार्यक्रम के जरिए करीब-करीब सभी छोटे-बड़े दल कर्पूरी को अपना बताने की होड़ में है। वह अंत्योदय समाज के प्रति जननायक के योगदान को याद कर रहे हैं। सभी ठाकुर के असली वारिस होने का दावा कर रहे हैं।

कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 - 17 फरवरी 1988) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री तथा दो बार मुख्यमंत्री थे। लोकप्रियता के कारण उन्हें 'जननायक' कहा जाता है। २३ जनवरी २०२४ को भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित करने की घोषणा की है।

पूर्वा धिकारी

सत्येन्द्र नारायण सिन्हा

‌ग्यारहवें मुख्यमंत्री, बिहार

पूर्वा धिकारी

दरोगा प्रसाद राय

उत्तरा धिकारी

भोला पासवान शास्त्री

पद बहाल

24 जुन 1977 – 21 अप्रैल 1979

पूर्वा धिकारी

जगन्नाथ मिश्र

उत्तरा धिकारी

राम सुंदर दास

‌दुसरे उप मुख्यमंत्री, बिहार

पद बहाल

5 मार्च 1967 – 31 जनवरी 1968

मुख्यमंत्री

महामाया प्रसाद सिन्हा

पूर्वा धिकारी

अनुग्रह नारायण सिन्हा

उत्तरा धिकारी

सुशील कुमार मोदी

शिक्षा मंत्री बिहार

पद बहाल

5 मार्च 1967 – 31 जनवरी 1968

उत्तरा धिकारी

सतीश प्रसाद सिंह

जन्म

24 जनवरी 1924

‌पितौंझिया, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश इंडिया

मृत्यु

17 फ़रवरी 1988 (उम्र 64)

पटना, बिहार, India

राजनीतिक दल

सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल, जनता पार्टी, लोकदल

व्यवसाय

स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ

पुरस्कार/सम्मान

 भारत रत्‍न (2024)

व्यक्तिगत जीवन

कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल में समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गाँव, जिसे अब 'कर्पूरीग्राम' कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था। उनके पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमान्त किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम करते थे।

उन्होंने 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्‍वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में पास की। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन छिड़ गया तो उसमें कूद पड़े। परिणामस्वरूप 26 महीने तक भागलपुर के कैंप जेल में जेल-यातना भुगतने के उपरांत 1945 में रिहा हुए। 1948 में आचार्य नरेन्द्रदेव एवं जयप्रकाश नारायण के समाजवादी दल में प्रादेशिक मंत्री बने। सन् 1967 के आम चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त समाजवादी दल (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) (संसोपा ) बड़ी ताकत के रूप में उभरी। 1970 में उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1973-77 में वे लोकनायक जयप्रकाश के छात्र-आंदोलन से जुड़ गए। 1977 में समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने। 24 जून, 1977 को पुनः मुख्यमंत्री बने। फिर 1980 में मध्यावधि चुनाव हुआ तो कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में लोक दल बिहार विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरा और कर्पूरी ठाकुर नेता बने।

कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्‍नशील रहे और संघर्ष करते रहे। उनका सादा जीवन, सरल स्वभाव, स्पष्‍ट विचार और अदम्य इच्छाशक्‍त‌ि बरबस ही लोगों को प्रभावित कर लेती थी और लोग उनके विराट व्यक्‍त‌ित्व के प्रति आकर्षित हो जाते थे। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उसे प्रगति-पथ पर लाने और विकास को गति देने में उनके अपूर्व योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।

कर्पूरी ठाकुर दूरदर्शी होने के साथ-साथ एक ओजस्वी वक्ता भी थे। आजादी के समय पटना की कृष्णा टॉकीज हॉल में छात्रों की सभा को संबोधित करते हुए एक क्रांतिकारी भाषण दिया कि "हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा" । इस भाषण के कारण उन्हें दण्ड भी झेलनी पड़ी थी।

वह देशवासियों को सदैव अपने अधिकारों को जानने के लिए जगाते रहे, वह कहते थे-

"संसद के विशेषाधिकार कायम रहें, अक्षुण रहें, आवश्यकतानुसार बढ़ते रहें। परंतु जनता के अधिकार भी। यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो जनता आज-न-कल संसद के विशेषाधिकारओं को चुनौती देगी"

कर्पूरी ठाकुर का चिर परिचित नारा था..

सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।

धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥

यह भी-

अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो

पग पग पर अड़ना सीखो

जीना है तो मरना सीखो।

वह जन नायक कहलाते हैं। सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ जिया। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था, वह सदा गरीबों के अधिकार के लिए लड़ते रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया मुंगेरी लाल आयोग के तहत् दिए और 1978 में ये आरक्षण दिया था जिसमें 79 जातियां थी। इसमें पिछड़ा वर्ग के 12% और अति पिछड़ा वर्ग के 08% दिया था। उनका जीवन लोगों के लिया आदर्श से कम नहीं।

राजनीतिक जीव

1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठतम नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। लोकनायक जय प्रकाश नारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया इनके राजनीतक गुरु थे। राम सेवक यादव एवं मधु लिमये जैसे दिग्गज साथी थे। लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी के राजनीतिक गुरु हैं। बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था 1977 में की । सत्ता पाने के लिए 4 कार्यकम बने-

1. पिछड़े वर्ग का ध्रुवीकरण

2. हिंदी का प्रचार प्रसार

3. समाजवादी विचारधारा

4. कृषि का सही लाभ किसानों तक पहुंचाना।

सन 1967 में जब वे पहली बार बिहार के उपमुख्यमन्त्री बने तब उन्होने बिहार में मैट्रिक परीक्षा पास करने के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया। इसके पीछे उनका सुचिंतित तर्क था। उस काल में अंग्रेजी के कारण अधिकांश लड़कियां मैट्रिक पास नहीं कर पाती थीं। इस कारण लड़कियों के विवाह में मैट्रिक की परीक्षा पास करना बड़ी अड़चन बन गया था। कर्पूरी ठाकुर ने इसका आकलन-अध्ययन कराया तो पता चला कि अधिकतर छात्र अंग्रेजी में ही अनुतीर्ण होते हैं। यह वह समय था जब छठी या आठवीं क्लास से अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू होती थी। यानी अंग्रेजी का ज्ञान देर से शुरू होता था और मैट्रिक का परिणाम खराब होने का यह कारण बनता। इसी उद्देश्य से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी विषय में पास करने की अनिवार्यता खत्म कर दी थी। इस प्रकार उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुँचाया। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था।

ईमानदार व्यक्तित्

कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।


जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।”

कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। इस पत्र में क्या था, इसके बारे में रामनाथ कहते हैं, “पत्र में तीन ही बातें लिखी होती थीं- तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।” रामनाथ ठाकुर इन दिनों भले राजनीति में हों और पिता के नाम का लाभ भी उन्हें मिला हो, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में उन्हें राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने का काम नहीं किया।

उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने अपने संस्मरण में लिखा, “कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।

कर्पूरी जी के मुख्यमंत्री रहते हुये ही उनके क्षेत्र के कुछ सामंती जमींदारों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशाशन को हो गयी तो तुरन्त जिला प्रशाशन कर्पूरी जी के घर पहुंच गया और उधर लठैत पहुंचे ही थे। लठैतो को बंदी बना लिया गया किन्तु कर्पूरी ठाकुर जी ने सभी लठैतों को जिला प्रशाशन से बिना शर्त छोडने का आग्रह किया तो अधिकारीगणो ने कहा कि इन लोगों ने मुख्यमंत्री के पिता को प्रताडित करने का कार्य किया इन्हे हम किसी शर्त पर नही छोड सकते थे। कर्पूरी ठाकुर जी ने कहा " इस प्रकार के पता नही कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोडते है काम करते है कहां तक, किस किस को बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां बाप है। इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाऔ प्रदेश के कोने कोने मे शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मो सितम का शिकार न होने पाये" लठैतो को कर्पूरी जी ने छुडवा दिया। इस प्रकार वे पक्षपात एवं मानवता का मसीहा कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं है।

अस्सी के दशक की बात है. बिहार विधान सभा की बैठक चल रही थी. कर्पूरी ठाकुर विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे. उन्होंने एक नोट भिजवा कर अपने ही दल के एक विधायक से थोड़ी देर के लिए उनकी जीप मांगी. उन्हें लंच के लिए आवास जाना था.

उस विधायक ने उसी नोट पर लिख दिया, ‘मेरी जीप में तेल नहीं है. कर्पूरी जी दो बार मुख्यमंत्री रहे. कार क्यों नहीं खरीदते?’ यह संयोग नहीं था कि संपत्ति के प्रति अगाध प्रेम के चलते वह विधायक बाद के वर्षों में अनेक कानूनी परेशानियों में पड़े, पर कर्पूरी ठाकुर का जीवन बेदाग रहा.

एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे. क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती

कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे. बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे.

स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया.

सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी. खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए.

कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया. तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए.अन्यथा आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा.

कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ नेता अपने यहां की शादियों में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं.पर जब कर्पूरी ठाकुर को अपनी बेटी की शादी करनी हुई तो उन्होंने क्या किया था? उन्होंने इस मामले में भी आदर्श उपस्थित किया.

1970-71 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे. रांची के एक गांव में उन्हें वर देखने जाना था. तब तक बिहार का विभाजन नहीं हुआ था. कर्पूरी ठाकुर सरकारी गाड़ी से नहीं जाकर वहां टैक्सी से गये थे. शादी समस्तीपुर जिला स्थित उनके पुश्तैनी गांव पितौंजिया में हुई. कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि शादी देवघर मंदिर में हो, पर उनकी पत्नी की जिद पर गांव में शादी हुई.

कर्पूरी ठाकुर ने अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को भी उस शादी में आमंत्रित नहीं किया था. यहां तक कि उन्होंने संबंधित अफसर को यह निर्देश दे दिया था कि बिहार सरकार का कोई भी विमान मेरी यानी मुख्य मंत्री की अनुमति के बिना उस दिन दरभंगा या सहरसा हवाई अड्डे पर नहीं उतरेगा. पितौंजिया के पास के हवाई अड्डे वहीं थे.आज के कुछ तथाकथित समाजवादी नेता तो शादी को भी ‘सम्मेलन’ बना देते हैं. भ्रष्ट अफसर और व्यापारीगण सत्ताधारी नेताओं के यहां की शादियों के अवसरों पर करोड़ों का खर्च जुटाते हैं. कर्पूरी ठाकुर के जमाने में भी थोड़ा बहुत यह सब होता था, पर कर्पूरी ठाकुर तो अपवाद थे.

हालांकि उनकी साधनहीनता भी उन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनने से रोक भी नहीं सकी. 1977 में जेपी आवास पर जयप्रकाश नारायण का जन्म दिन मनाया जा रहा था.

पटना के कदम कुआं स्थित चरखा समिति भवन में, जहां जेपी रहते थे,देश भर से जनता पार्टी के बड़े नेता जुटे हुए थे. उन नेताओं में चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख शामिल थे. मुख्यमंत्री पद पर रहने बावजूद फटा कुर्ता, टूटी चप्पल और बिखरे बाल कर्पूरी ठाकुर की पहचान थे. उनकी दशा देखकर एक नेता ने टिप्पणी की, ‘किसी मुख्यमंत्री के ठीक ढंग से गुजारे के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए?’ सब निहितार्थ समझ गए. हंसे. फिर चंद्रशेखर अपनी सीट से उठे. उन्होंने अपने लंबे कुर्ते को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सामने की ओर फैलाया. वह बारी-बारी से वहां बैठे नेताओं के पास जाकर कहने लगे कि आप कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए. तुरंत कुछ सौ रुपए एकत्र हो गए. उसे समेट कर चंद्रशेखर जी ने कर्पूरी जी को थमाया और कहा कि इससे अपना कुर्ता-धोती ही खरीदिए. कोई दूसरा काम मत कीजिएगा. चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कर्पूरी ठाकुर ने कहा, ‘इसे मैं मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करा दूंगा.’

यानी तब समाजवादी आंदोलन के कर्पूरी ठाकुर को उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए जाना जाता था, पर आज के कुछ समाजवादी नेताओं को? कम कहना और अधिक समझना !

कर्पूरी को कुछ लिखाते समय ही कर्पूरी ठाकुर को नींद आ जाती थी, तो नींद टूटने के बाद वे ठीक उसी शब्द से वह बात लिखवाना शुरू करते थे, जो लिखवाने के ठीक पहले वे सोये हुए थे।

निधन

वे राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी। वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी। कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।


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