Girija Kumar Mathur

गिरिजा कुमार माथुर  

(जन्म: 22 अगस्त1919; मृत्यु: 10 जनवरी1994)


             Girija Kumar Mathur
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जीवन-परिचयगिरिजाकुमार माथुर (जन्म: 22 अगस्त1919; मृत्यु: 10 जनवरी1994) एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं। लम्बे अरसे तक इन्होंने आकाशवाणी की सेवा की। इनकी कविता में रंग, रूप, रस, भाव तथा शिल्प के नए-नए प्रयोग हैं। मुख्य काव्य संग्रह हैं, 'नाश और निर्माण', 'मंजीर', 'धूप के धान', 'शिलापंख चमकीले, 'जो बंध नहीं सका', 'साक्षी रहे वर्तमान', 'भीतर नदी की यात्रा', 'मैं वक्त के हूँ सामने' तथा 'छाया मत छूना मन' आदि। इन्होंने कहानीनाटक तथा आलोचनाएं भी लिखी हैं। गिरिजाकुमार माथुर की 'मैं वक़्त के हूँ सामने' नामक काव्य संग्रह साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है।

इनका जन्‍म सन्  22 अगस्त1919 में मश्‍य प्रदेश के एक कस्‍बे अशोक नगर में हुआ था। ये जााति के कायस्‍थ हैं। इनके पिता एक अध्‍यापक थे। उनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे। सितार बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी मालवा की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजीइतिहासभूगोल आदि पढाया। पिता सरल स्‍वभाव के नग्र व्‍यथ्‍कत थे। इनकी आर्थिक दशा सुदृढ्र नहींं थी, फिर भी बालक के विकास के लिए उनके द्वारा शिक्षा-दीक्षा की उचित व्‍यवस्‍था की गई। सन् 1934 में इन्‍हेांने राजकीय इण्‍टरमीडिएट कालेज झांसी से हाई स्‍कूल की परीक्षा उत्‍तीर्ण की और सन् 1938 में विक्‍टोरिया कालेज, ग्‍वालियर से बी.ए. की परीक्षा उत्‍तीर्ण हुए। गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत 1934 में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदीबालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और 1941 में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने निराला से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। सन 1943 में अज्ञेय द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। उनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। प्रारम्‍भ में ब्रजभाषा में ललित रचनाऍ प्रारम्‍भ की थी, कविता सवैये लिख करते थे, परन्‍तु कालांतर में मैथिलीशरण गुप्‍त की रचनाओं से प्रेरणा ग्रहण कर खड़ी बोली में काव्‍य रचना करने लगे। 1941 में इन्‍होंने लखनऊ विश्‍वविद्यालय से परास्‍ना तक की उपधि प्राप्‍त करने के उपरान्‍त एल. एल. बी. किया, तदुपरान्‍त झांसी में वकालत को अपना कार्यक्षेत्र बनाने का निश्‍चय किया, परन्‍तु इस कार्य में सफलता न मिलने के कारण ये अपनी ससुराल दिल्‍ली चले आये। कुद दिनों तक आजीविका के लिए इधर-उधर टक्‍कर खाने के बाद इनकी नियुक्ति आल इण्डिया रेडियो में हो गई। प्रारम्भिक कठिनाइयों के दिन इन्‍होनं बड़े संघर्ष के साथ बिताये। आल इण्डिया रेडियो में सेवा करते-करते अब ये केन्‍द्र निदेशक के पद पर प्रतिष्ठित और कार्यरत थे।
प्रारम्भ्कि संघर्षमय जीवन में इन्‍हें अनेक यातनाएं भुगतनी पड़ी, परन्‍तु दृढ़ता के साथ अपनी उन कठिनाइयों का निवारण करते हुए जीवन पथ पर आग्र बढ़ते रहे। इनके जीवन की दिशा स्‍वनिर्मित है। इस संदर्भ में इनकी जीवनी लेखक श्री कैलाश बाजपेयी ने लिखा है- ''गिरिजा कुमार ने इंच-इंच कर अपना रास्‍ता बनाया। पांच-पांच रुपये तक के प्रोग्राम किये।''

रचनाएं
अब तक इनके लिखे गए चार काव्‍य संग्रह प्रकाशित हो चुके है, जिनका विवरण प्रकाशन क्रमानुसार इस प्रकार है-

  • मंजीर
  • नाश और निर्माण
  • धूप के धान
  • शिला पंख चमकीले

सम्मान और पुरस्कार
  • 1991 में कविता-संग्रह "मै वक्त के सामने" के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार
  • 1993 में के. के. बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित व्यास सम्मान
  • शलाका सम्मान
निधन
10 जनवरी1994 को नई दिल्ली में गिरिजाकुमार माथुर का निधन हुआ।

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