Dharamvir Bharati


धर्मवीर भारती

 (25 दिसंबर, 1926 - 4 सितंबर, 1997)



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जीवन-परिचय - धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में हुआ। उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा और माँ का श्रीमती चंदादेवी था। स्कूली शिक्षा डी. ए वी हाई स्कूल में हुई और उच्च शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय में। प्रथम श्रेणी में एम ए करने के बाद डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध-प्रबंध लिखकर उन्होंने पी-एच०डी० प्राप्त की। पारिवारिक व्‍यवस्‍था सुदृढ़ थी। अत: इनकी शिक्षा-दीक्षा की उचित व्‍यवस्‍था की गई। अध्‍ययन की ओर विशेष रुचि होने के कारण शिक्षा का क्रम चलता रहा। सन् 1947 में इन्‍होंने प्रयाग विश्‍वविद्यालय से परास्‍नातक परीक्षा हिन्‍दी विषय से उत्‍तीर्ण की। साहित्‍य के प्रति रुझान और अभिरुचि से इन्‍होंने  'सिद्ध साहित्‍य' पर शोध कार्य किया, जिस पर इन्‍हें डी.फिल्. की उपाधि मिली। इसके बाद ये प्रयाग विश्‍वविद्यालय के 'हिन्‍दी विभाग' में संलग्‍न हो गये। इनका झुकाव प्रारम्‍भ से ही पत्रकारिता की ओर रहा है। प्रयाग निवास करते हुए इन्‍होंने लीडर प्रेस सेप्रकाशित 'संगम' नामक साप्‍ताहिक पत्र के सम्‍पादन में री इलाचन्‍द्र जोशी के सहायक के रूप में कार्य किया। इसके पख्‍चात् 'साहित्‍य भाव प्रा. लिमिटेड'  से सम्‍पादित 'निकस' नामक पत्रिका का सम्‍पादन भार लिया। पिछले कई वर्षो में इनहोंने बम्‍बई से प्रकाशित सचित्र साप्‍ताहिक पत्रिका 'धर्मयुग' का सम्‍पादन सफलतापूर्वक किया। इनमें साहित्‍य सम्‍पादन के प्रति विशेष लगन है तथा पूर्ण सूझबूझ के साथ इस प्रकार के दायित्‍व का कुशलता से निर्वाह कर हो है।
घर और स्कूल से प्राप्त आर्यसमाजी संस्कार, इलाहाबाद और विश्वविद्यालय का साहित्यिक वातावरण, देश भर में होने वाली राजनैतिक हलचलें, बाल्यावस्था में ही पिता की मृत्यु और उससे उत्पन्न आर्थिक संकट इन सबने उन्हें अतिसंवेदनशील, तर्कशील बना दिया। उन्हें जीवन में दो ही शौक थे : अध्ययन और यात्रा। भारती के साहित्य में उनके विशद अध्ययन और यात्रा-अनुभवोंं का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है:
जानने की प्रक्रिया में होने और जीने की प्रक्रिया में जानने वाला मिजाज़ जिन लोगों का है उनमें मैं अपने को पाता हूँ। (ठेले पर हिमालय)
उन्हें आर्यसमाज की चिंतन और तर्कशैली भी प्रभावित करती है और रामायणमहाभारत और श्रीमद्भागवत। प्रसाद और शरत्चन्द्र का साहित्य उन्हें विशेष प्रिय था। आर्थिक विकास के लिए मार्क्स के सिद्धांत उनके आदर्श थे परंतु मार्क्सवादियों की अधीरता और मताग्रहता उन्हें अप्रिय थे। ‘सिद्ध साहित्य’ उनके शोध’ का विषय था, उनके सटजिया सिद्धांत से वे विशेष रूप से प्रभावित थे। पश्चिमी साहित्यकारों में शीले और आस्करवाइल्ड उन्हें विशेष प्रिय थे। भारती को फूलों का बेहद शौक था। उनके साहित्य में भी फूलों से संबंधित बिंब प्रचुरमात्रा में मिलते हैं।

आलोचकों में भारती जी को प्रेम और रोमांस का रचनाकार माना है। उनकी कविताओं, कहानियों और उपन्यासों में प्रेम और रोमांस का यह तत्व स्पष्ट रूप से मौजूद है। परंतु उसके साथ-साथ इतिहास और समकालीन स्थितियों पर भी उनकी पैनी दृष्टि रही है जिसके संकेत उनकी कविताओंं, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, आलोचना तथा संपादकीयों में स्पष्ट देखे जा सकते हैं। उनकी कहानियों-उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ के चित्रा हैं ‘अंधा युग’ में स्वातंत्रयोत्तर भारत में आई मूल्यहीनता के प्रति चिंता है। उनका बल पूर्व और पश्चिम के मूल्यों, जीवन-शैली और मानसिकता के संतुलन पर है, वे न तो किसी एक का अंधा विरोध करते हैं न अंधा समर्थन, परंतु क्या स्वीकार करना और क्या त्यागना है इसके लिए व्यक्ति और समाज की प्रगति को ही आधार बनाना होगा-
पश्चिम का अंधानुकरण करने की कोई जरूरत नहीं है, पर पश्चिम के विरोध के नाम पर मध्यकाल में तिरस्कृत मूल्यों को भी अपनाने की जरूरत नहीं है।
उनकी दृष्टि में वर्तमान को सुधारने और भविष्य को सुखमय बनाने के लिए आम जनता के दुःख दर्द को समझने और उसे दूर करने की आवश्यकता है। दुःख तो उन्हें इस बात का है कि आज ‘जनतंत्र‘ में ‘तंत्र‘ शक्तिशाली लोगों के हाथों में चला गया है और ‘जन’ की ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। अपनी रचनाओं के माध्यम से इसी ‘जन’ की आशाओं, आकांक्षाओं, विवशताओं, कष्टों को अभिव्यक्ति देने का प्रयास उन्होंने किया है।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन। 1948 में 'संगम' सम्पादक श्री इलाचंद्र जोशी में सहकारी संपादक नियुक्त हुए। दो वर्ष वहाँ काम करने के बाद हिन्दुस्तानी अकादमी में अध्यापक नियुक्त हुए। सन् १९६० तक कार्य किया। प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन के दौरान 'हिंदी साहित्य कोश' के सम्पादन में सहयोग दिया। निकष' पत्रिका निकाली तथा 'आलोचना' का सम्पादन भी किया। उसके बाद 'धर्मयुग' में प्रधान सम्पादक पद पर बम्बई आ गये।
1997 में डॉ॰ भारती ने अवकाश ग्रहण किया। 1999 में युवा कहानीकार उदय प्रकाश के निर्देशन में साहित्य अकादमी दिल्ली के लिए डॉ॰ भारती पर एक वृत्त चित्र का निर्माण भी हुआ है।
पुरस्‍कार -
1972 में पद्मश्री से अलंकृत डा धर्मवीर भारती को अपने जीवन काल में अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए जिसमें से प्रमुख हैं
  • 1984 हल्दी घाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार
  • महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन 1988
  • सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार संगीत नाटक अकादमी दिल्ली 1989
  • भारत भारती पुरस्कार उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 1990
  • महाराष्ट्र गौरव, महाराष्ट्र सरकार 1994
  • व्यास सम्मान के के बिड़ला फाउंडेशन

रचनाएं -
  • कहानी संग्रह : मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान, साँस की कलम से, समस्त कहानियाँ एक साथ
  • काव्य रचनाएं : ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कनुप्रिया, सपना अभी भी, आद्यन्त
  • उपन्यासगुनाहों का देवतासूरज का सातवां घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, प्रारंभ व समापन
  • निबंध : ठेले पर हिमालय, पश्यंती
  • एकांकी व नाटक  : नदी प्यासी थी, नीली झील, आवाज़ का नीलाम आदि
  • पद्य नाटक : अंधा युग
  • आलोचना : प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य

भाषा -

         परिमार्जित खड़ीबोली; मुहावरों, लोकोक्तियों, देशज तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग।

शैली -

         भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक आलोचनात्मक हास्य व्यंग्यात्मक।


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