डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम
डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम
15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015
Biography of APJ Abdul Kalam in Hindi
अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम अथवा ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (अंग्रेज़ी: A P J Abdul Kalam), जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता (इंजीनियर) के रूप में विख्यात थे। उन्होंने सिखाया जीवन में चाहें जैसे भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। अब्दुल कलाम के विचार आज भी युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में 'मिसाइल मैन' के रूप में जाना जाता है।
इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।
कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।
छोटे गांव में हुआ जन्म - डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडू के एक छोटे से गांव धनुषकोडी में हुआ। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उनके पिता मछुआरों को नाव किराए पर देते थे। वहीं उनकी माता गृहिणी थीं। जोकि तमिल मुसलमान थे कलाम साहब का पूरा नाम डॉ अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम हैं तथा इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन तथा माता का नाम आशिमा था इनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था इनके पिता अपनी नाव मछुआरों को देकर मिलने वाले पैसे से अपना घर चलाते थे जिसके चलते उनको तथा उनके परिवार को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता था तथा कलाम साहब भी इसी के चलते घर घर जाकर अखबार बांटने थे लगे थे तथा उन पैसों से अपने स्कूल की फीस भरते थे उन्हें विरासत में केवल गरीबी ही मिली थी पिता के संस्कार जिसकी वजह डॉ कलाम शुरू से ही अनुशासन प्रिय ईमानदार कथा बहुत ही उदार तथा सरल स्वभाव के थे तथा इनकी माताजी धार्मिक स्वभाव वाली महिला थी डॉ कलाम साहब के तीन बड़े भाई बा एक बड़ी बहन थी।
अखबार बेचकर की पढ़ाई - जब अब्दुल कलाम जी जब पांच बर्ष के हुए तब उन्होंने अपना दाखिला एक सरकरी स्कुल में करा लिया. इस स्कूल में ही कलाम जी को एक शिक्षक ने बताया की जीवन में ( सफल व कुछ पाने ) के लिए आपको इन तिन शक्ति तीव्र इच्छा , आस्था , अपेझा को पूर्ण रूप से समझना पड़ेगा.
जब कलाम जी अपनी पाँचवी कझा में पढाई कर रहे थे. तब ही उन्होंने यह निर्णय ले लिए था की आगे चलकर उन्हें Aero Space Engineering से पढाई करनी है. यह निर्णय कलाम जी ने एक उडती चिडिया को देख कर लिया था.
जब कलाम जी पांच कझा में पढाई कर रहे थे. तब उनके अध्यापक सभी छात्र को चिडिया के उड़ने के बारे में पढ़ा रहे थे, यह विषय सभी छात्र को नया लगा और इसी कारण वह इसे समझ नहीं प् रहे थे. इसके बाद उनके अध्यापक ने सभी छात्र को गहराई से समझाने के लिए समुन्द्र तट पर ले गए. जब सभी छात्र चिडिया का उड़ना समझ रहे थे. तब ही कलाम जी ने यह निर्णय ले लिए की आप आगे उन्हें अब विमान विज्ञानं में पढाई करनी है.
लेकिन कलाम जी के परिवार की दसा सही नहीं थी. इस लिए कलाम जी ने अपने पढाई के पैसे इकठा करने के लिए उन्होंने घरो में अख़बार बाटने का काम भी सुरु किया. इन सभी कामो के साथ – साथ कलाम जी ने पढाई पर भी अधिक ध्यान दिया. आप इस बात से अनुमान लगा लीजिये की कलाम जी सुबह 4 बजे उठ कर अपनी गणित की कोचिंग पढने जाते थे.
इसी के साथ कलाम जी ने अपनी स्नातक की डिग्री 1950 में मद्रास इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी में अन्तरिक्ष विज्ञानं से प्राप्त की थी. इसके बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना में काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संघठन में प्रवेश किया. इस संस्था में कलाम जी ने बहुत से उपग्रह का सफल परिक्षण किया. इसके बाद 1961 में कलाम जी ने भारत के लिए कई प्रमुख उपग्रह पर काम किया. इसी के साथ कलाम जी ने भारत के पहली उपग्रह एस एल वि 3 के निर्माण में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई और इसी के साथ भारत का रोहणी उपग्रह 1982 में सफलता पूर्वक अन्तरिक्ष में प्रझेपण किया गया.
अब्दुल कलाम जी का वैज्ञानिक जीवन
कलाम जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन में वैज्ञानिक छेत्र में काफी योगदान दिया. कलाम जी के योगदान की सुरुवात सन् 1972 में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान से जुड़ने से हुई और इसी के कलाम जी को भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह को बनाने का एस एल वि 3 के निर्माण का श्रेय प्राप्त हुआ.
इस के बाद कलाम जी को भारत के रोहणी उपग्रह को सन् 1980 ई में प्रथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करने का एक सुनहरा मौका मिला और इसी सफल पयोग के साथ भारत को भी सभी देशो के तरह अंतराष्ट्रीय अन्तरिक्ष क्लब में सामिल होने का मौका मिला.
इसी के बाद कलाम जी ने भारतीय सेना के लिए दुश्मनों को लेजर से मरने वाले ग्रेनेड का भी निर्माण किया. इसके बाद कलाम जी ने भारत की दो बड़ी मिसाइल अग्नि और प्रथ्वी प्रेक्षपस्त्रो को विदेशी तकनिकी के मदद से तैयार किया.
कलाम जी ने इसके बाद ही भारत को परमाणु शक्ति प्रदान करने के लिए पोखरण में परमाणु हथियार का परमाणु उर्जा के साथ एक सफल परिक्षण किया. जिसके बाद भारत देश भी विश्व में परमाणु हथियार से संयुक्त देश बन पाया है.
कलाम जी ने भारत के लिए 2020 तक एक भारत को एक आधुनिक देश बनाने की एक अच्छी सोच प्रदान की जिसके बाद भारत के कई वैज्ञानिक इस काम को पूरा कर रहे. इसके बाद कलाम जी ने अपने सारा ध्यान भारत की सेना की शक्ति को बढ़ने के लिए ग्रेनेड पर काम किया. इस काम के लिए वह दुबारा से भारतीय रक्षा अनुसंधान में नेर्देशक के तौर पर वापसी की थी.
कलाम जी के उन्ही योगदान के चलते उन्हें 1992 में भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार के रूप ने नियुक्ति की गई. जिसके बाद 1998 में भारत में अपना दूसरा परमाणु परिक्षण किया और इसी के साथ भारत सम्पूर्ण रूप से परमाणु संयुक देश बन गया.
मिसाइल मैंन नाम की उपाधि – Abdul Kalam Missile man
अब्दुल कलाम जी ने सन् 1988 में प्रथम मिसाइल पृथ्वी और सन् 1989 में अग्नि मिसाइल का सफल परिक्षण किया. इसके अलावा भी कलाम जी ने भारत के लिए कई मिसाइल का सफल परिक्षण किया. इसके बाद IGMDP निर्देशन ए . पि . जे . अब्दुल कलाम के कामो को देखते हुए, कलाम जी को “ मिसाइल मैंन ” के नाम की उपाधि दी थी. इसी के बाद कलाम जी को पूरा देश मिसाइल मैंन के नाम से जानने लगे.
अब्दुल कलाम जी का व्यक्तिगत जीवन
कलाम जी अपने जीवन में बहुत ही साधारण व अनुशासन का पालन करने वाले व्यक्ति थे. वह अपने जीवन में कुरान व श्री भगवत गीता इन दोनों पुस्तक का ध्यान करते थे. इसके अलवा वह तिरुक्कुरल ( प्राचीन भाषा में लिखित मुक्तक पुस्तक ) का भी अध्यन करते थे. इस बात का उल्लेख कलाम जी ने अपने कई भाषणों में किया है.
कलाम जी अपने सम्पूर्ण जीवन में वैज्ञानिक कार्यकर्मो में ज्यादा समय देते थे. इसके अलावा कलाम जी यह चाहते थे की भारत एक आधुनिक देश बन कर पूरी दुनिया में चमके इस काम के लिए उन्होंने कई उपकरणों में अपना योगदान दिया. इसी के बाद कलाम जी ने भारतीय अन्तरिक्ष के कई कार्यक्रम में अपना योगदान दिया और भारत को दुनिया में एक अलग पहचान दी.
कलाम जी को छोटे बच्चे बहुत पसंद थे. वह इन छोटे बच्चो से बात करने के लिए हमेशा किसी न किसी स्कूल में जाया करते थे. इन सभी जगह पर कलाम जी बच्चो को विज्ञानं के प्रति और अपनी पढाई के प्रति लापरवाही न करने की सलाह दिया करते थे.
कैरियर
मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकाप्टर का डिजाईन बना कर किया। डीआरडीओ में कलाम को उनके काम से संतुष्टि नहीं मिल रही थी। कलाम पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा गठित ‘इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्हें प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1969 में उनका स्थानांतरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में हुआ। यहाँ वो भारत के सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे। इसी परियोजना की सफलता के परिणामस्वरूप भारत का प्रथम उपग्रह ‘रोहिणी’ पृथ्वी की कक्षा में वर्ष 1980 में स्थापित किया गया। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमे उनका मन लगता है।
1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परिक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परिक्षण देखने के लिए भी बुलाया था।सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्यों और सफलताओं से डॉ कलाम भारत में बहुत प्रसिद्द हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गयी थी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दी थी।भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का प्रारम्भ डॉ कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी है।
कैरियर
मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकाप्टर का डिजाईन बना कर किया। डीआरडीओ में कलाम को उनके काम से संतुष्टि नहीं मिल रही थी। कलाम पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा गठित ‘इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्हें प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1969 में उनका स्थानांतरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में हुआ। यहाँ वो भारत के सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे। इसी परियोजना की सफलता के परिणामस्वरूप भारत का प्रथम उपग्रह ‘रोहिणी’ पृथ्वी की कक्षा में वर्ष 1980 में स्थापित किया गया। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमे उनका मन लगता है।
1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परिक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परिक्षण देखने के लिए भी बुलाया था।
सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्यों और सफलताओं से डॉ कलाम भारत में बहुत प्रसिद्द हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गयी थी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दी थी।
भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का प्रारम्भ डॉ कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी है।
जुलाई 1992 से लेकर दिसम्बर 1999 तक डॉ कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव थे। भारत ने अपना दूसरा परमाणु परिक्षण इसी दौरान किया था। उन्होंने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर. चिदंबरम के साथ डॉ कलाम इस परियोजना के समन्वयक थे। इस दौरान मिले मीडिया कवरेज ने उन्हें देश का सबसे बड़ा परमाणु वैज्ञानिक बना दिया।
वर्ष 1998 में डॉ कलाम ने ह्रदय चिकित्सक सोमा राजू के साथ मिलकर एक कम कीमत का ‘कोरोनरी स्टेंट’ का विकास किया। इसे ‘कलाम-राजू स्टेंट’ का नाम दिया गया।
अब्दुल कलम जी का राष्ट्रपति कार्यकाल
अब्दुल कलाम जी ने 18 जुलाई 2002 में 90 प्रतिशत वोट के साथ इन्हें भारत का नया राष्ट्रपति पद को ग्रहण किया. इस पद को ग्रहण करने से पहले कलाम जी भारतीय जनता पार्टी की एन. डी . ए ने अपना उम्मीदवार बनाया और इसी का कलाम जी का विपक्षी पार्टी ने बहुत विरोध किया. लेकिन भारत की जनता को कलाम जी का राष्ट्रपति बनाना काफी पसंद आय.
अब्दुल कलाम जी ने 22 जुलाई 2002 को भारत के संसद में अपना राष्ट्रपति पद की शपथ ली. इस शपथ ग्रहण सम्हारोह में भारत के प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपाई के सहित सभी मंत्री मंडल के लोंग भी उपस्थित हुए. इसके बाद कलाम जी ने भारत के राष्ट्रपति पद पर 22 जुलाई 2007 तक रहे. इस कार्यकाल में कलाम जी ने भारत की नै पीढ़ी को विज्ञानं के तरफ जागरूक करने के लिए कई कार्यो का आरंभ किया.
कलाम जी अपने जीवन में बहुत ही सरल व्यक्ति थे, इसके अलावा आपको यह जान कर हैरानी होगी की कलाम जी पूर्ण रूप से शाकाहारी ही थे. इसके अलावा कलाम जी ने अपने आगे आने वाली पीढ़ी को आगे बढने के लिए कई पुस्तक भी लिखी. इन सभी पुस्तक में “ विंग आफ फायर ” नाम की बुक कलाम जी ने ख़ास तौर पर नई पीढ़ी के लिए लिखी थी.
कलाम जी ने कभी भी राजनीती के मामलो में दखल नहीं देते. लेकिन जब वह राष्ट्रपति बने तब उन्होंने भारत के आधुनिक विकास के लिए कई नीतियो को बनाई. इन सभी नीतियों में सबसे ज्यादा अन्तरिक्ष विज्ञानं , परमाणु शक्ति , दूर – संचार सेवा , आधुनिक भारत , आदि कई और प्रमुख नीतिया बनाई थी. इन सभी निति को कलाम जी ने एक किताब “ भारत 2020 ” का नाम दिया और उसी से आगे जाने का संकेत दिया.
राष्ट्रपति पद के बाद का सफ़र
जब अब्दुल कलाम जी ने अपना 2007 में राष्ट्रपति कार्यकाल को छोड़ा. तब उसके बाद वह कलाम जी को भारत के कई प्रमुख संस्था विजिटिंग प्रोफ़ेसर बने और इन सभी संस्था में कुछ प्रमुख संस्था इस प्रकार भारतीय प्रबंधन शंस्थान शिलागो , भारतीय प्रबंधन शंस्था अलाहाबाद , भारतीय प्रबंधन संस्था इंदौर , भारतीय विज्ञानं संस्था बंगलूर , आदि है. इसके अलावा कलाम जी को भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञानं एवं प्रोद्योगिक संस्था, तिरुवंतपुरम के कुलाधिपति पद से समानित किया गया. कलाम जी को इसके अलावा भारत के कई और संस्था में अरोस्पस प्रोफ़ेसर के रूप में चुना गया,
सन् 2012 में कलाम जी ने भारत के नई पीढ़ी को विज्ञानं और आन्दोलन को खत्म करने के बारे में कुछ नया सीखने के लिए “ मै अन्दोलन को क्या दे सकता हु ” की शुरुवात की थी. इसके अलावा कलम जी कलि समय में कुछ किताब या फिर किसी तरह के ग्रन्थ को पढ़ लेते थे.
कलाम जी को बच्चे बड़े ही अच्छे लगते थे, इस लिए वह कलि समय में कभी कभी बच्चो के पास जा कर उनके साथ गीत संगीत किया करते थे. इसके अलावा कलाम जी बच्चो को जागरूक करने के लिए कॉलेज में भी जाया करते थे.
अब्दुल कलाम की लिखी किताब
Abdul Kalam book दोस्तों अब्दुल कलाम जी ने अपने जीवन में कई किताब लिखी और यह किताब बहुत ही लाभदायक भी है. अब आपको हम कलाम जी की लिखी कुछ प्रमुख किताब के बारे में बताने जा रहे है.
- इंडिया 2020
- विजन फायर डा न्यू मिलेनियम
- मई जर्नी
- इग्राटीड़ माइंड्स – अनलीशिंग द पावर विदीन इंडिया
पुरस्कार और सम्मान
देश और समाज के लिए किये गए उनके कार्यों के लिए, डॉ कलाम को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया।
वर्ष सम्मान संगठन
2014 डॉक्टर ऑफ साइंस एडिनबर्ग विश्वविद्यालय , ब्रिटेन
2012 डॉक्टर ऑफ़ लॉ ( मानद ) साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय
2011 आईईईई मानद सदस्यता आईईईई
2010 डॉक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग वाटरलू विश्वविद्यालय
2009 मानद डॉक्टरेट ऑकलैंड विश्वविद्यालय
2009 हूवर मेडल ASME फाउंडेशन, संयुक्त राज्य अमेरिका
2009 अंतर्राष्ट्रीय करमन वॉन विंग्स पुरस्कार कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान , संयुक्त राज्य अमेरिका
2008 डॉक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय , सिंगापुर
2007 चार्ल्स द्वितीय पदक रॉयल सोसाइटी , ब्रिटेन
2007 साइंस की मानद डाक्टरेट वॉल्वर हैम्प्टन विश्वविद्यालय , ब्रिटेन
2000 रामानुजन पुरस्कार अल्वर्स रिसर्च सैंटर, चेन्नई
1998 वीर सावरकर पुरस्कार भारत सरकार
1997 राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1997 भारत रत्न भारत सरकार
1994 विशिष्ट फेलो इंस्टिट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स (भारत)
1990 पद्म विभूषण भारत सरकार
1981 पद्म भूषण भारत सरकार
वर्ष | सम्मान | संगठन |
2014 | डॉक्टर ऑफ साइंस | एडिनबर्ग विश्वविद्यालय , ब्रिटेन |
2012 | डॉक्टर ऑफ़ लॉ ( मानद ) | साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय |
2011 | आईईईई मानद सदस्यता | आईईईई |
2010 | डॉक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग | वाटरलू विश्वविद्यालय |
2009 | मानद डॉक्टरेट | ऑकलैंड विश्वविद्यालय |
2009 | हूवर मेडल | ASME फाउंडेशन, संयुक्त राज्य अमेरिका |
2009 | अंतर्राष्ट्रीय करमन वॉन विंग्स पुरस्कार | कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान , संयुक्त राज्य अमेरिका |
2008 | डॉक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग | नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय , सिंगापुर |
2007 | चार्ल्स द्वितीय पदक | रॉयल सोसाइटी , ब्रिटेन |
2007 | साइंस की मानद डाक्टरेट | वॉल्वर हैम्प्टन विश्वविद्यालय , ब्रिटेन |
2000 | रामानुजन पुरस्कार | अल्वर्स रिसर्च सैंटर, चेन्नई |
1998 | वीर सावरकर पुरस्कार | भारत सरकार |
1997 | राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1997 | भारत रत्न | भारत सरकार |
1994 | विशिष्ट फेलो | इंस्टिट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स (भारत) |
1990 | पद्म विभूषण | भारत सरकार |
1981 | पद्म भूषण | भारत सरकार |
मृत्यु:
27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिल्लोंग, में अध्यापन कार्य के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद करोड़ों लोगों के प्रिय और चहेते डॉ अब्दुल कलाम परलोक सिधार गए।
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