सुभाष चन्द्र बोस

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस(23 जनवरी 1897–18 अगस्त 1945)


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (23 जनवरी 1897–18 अगस्त 1945)
जीवन-परिचय - नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरद चन्द्र से था। शरदबाबू प्रभावती और जानकीनाथ के दूसरे बेटे थे। सुभाष उन्हें मेजदा कहते थे। शरदबाबू की पत्नी का नाम विभावती था।
सुभाष चन्द्र बोस (बांग्ला: সুভাষ চন্দ্র বসু उच्चारण: शुभाष चॉन्द्रो बोशु, जन्म: 23 जनवरी 1897, मृत्यु: 18 अगस्त 1945) जो नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था।
नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए "दिल्ली चलो!" का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।
21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनीजापानफिलीपींसकोरियाचीनइटलीमान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया।
1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।
6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें माँगीं।
नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई। वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से सम्बंधित दस्तावेज़ अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किये?(यथा सभंव नेता जी की मौत नही हूई थी) 
16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया।
आजाद हिंद सरकार के 75 साल पूर्ण होने पर इतिहास मे पहली बार साल 2018 मे नरेंद्र मोदी ने किसी प्रधानमंत्री के रूप में 15 अगस्त के अलावा लाल किले पर तिरंगा फहराया। 11 देशो कि सरकार ने इस सरकार को मान्यता दी थी।
  • प्रारम्भिक शिक्षा
सुभाष चन्द्र बोस की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के ही स्थानीय मिशनरी स्कूल में हुई। इन्हें 1902 में प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में प्रवोश दिलाया गया। ये स्कूल अंग्रेजी तौर-तरीके पर चलता था जिससे इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की अंग्रेजी अन्य भारतीय स्कूलों के छात्रों के मुकाबले अच्छी थी। ऐसे स्कूल में पढ़ने के और भी फायदे थे जैसे अनुशासन, उचित व्यवहार और रख-रखाव आदि। इनमें भी अनुशासन और नियमबद्धता बचपन में ही स्थायी रुप से विकसित हो गयी। इस स्कूल में पढ़ते हुये इन्होंने महसूस किया कि वो और उनके साथी ऐसी अलग-अलग दुनिया में रहते हैं जिनका कभी मेल नहीं हो सकता। सुभाष शुरु से ही पढ़ाई में अच्छे नंबरों से प्रथम स्थान पर आते थे लेकिन वो खेल कूद में बिल्कुल भी अच्छे नहीं थे। जब भी किसी प्रतियोगिता में भाग लेते तो उन्हें हमेशा शिकस्त ही मिलती।
1909 में इनकी मिशनरी स्कूल से प्राइमरी की शिक्षा पूरी होने के बाद इन्हें रेवेंशॉव कॉलेजिएट में प्रवोश दिलाया गया। इस स्कूल में प्रवोश लेने के बाद बोस में व्यापक मानसिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आये। ये विद्यालय पूरी तरह से भारतीयता के माहौल से परिपूर्ण था। सुभाष पहले से ही प्रतिभाशाली छात्र थे, बस बांग्ला को छोड़कर सभी विषयों में अव्वल आते थे। इन्होंने बांग्ला में भी कड़ी मेहनत की और पहली वार्षिक परीक्षा में ही अच्छे अंक प्राप्त किये। बांग्ला के साथ-साथ इन्होंने संस्कृत का भी अध्ययन करना शुरु कर दिया।
रेवेंशॉव स्कूल के प्रधानाचार्य (हेडमास्टर) बेनीमाधव दास का सुभाष के युवा मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। माधव दास ने इन्हें नैतिक मूल्यों पर चलने की शिक्षा दी साथ ही ये भी सीख दी कि असली सत्य प्रकृति में निहित है अतः इसमें स्वंय को पूरी तरह से समर्पित कर दो। जिसका परिणाम ये हुआ कि ये नदी के किनारों और टीलों व प्राकृतिक सौंन्दर्य से पूर्ण एकांत स्थानों को खोजकर ध्यान साधना में घंटों लीन रहने लगे।
सुभाष चन्द्र के सभा और योगाचार्य के कार्यों में लगे रहने के कारण इनके परिवार वाले व्यवहार से चिन्तित होने लगे क्योंकि ये अधिक से अधिक समय अकेले बिताते थे। परिवार वालों को इनके भविष्य के बारे में चिन्ता होने लगी कि इतना होनहार और मेधावी होने के बाद भी ये पढ़ाई में पिछड़ न जाये। परिवार की आशाओं के विपरीत 1912-13 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान प्राप्त किया जिससे इनके माता-पिता बहुत खुश हुये।

ऑस्ट्रिया में प्रेम विवाह


सन् 1934 में जब सुभाष ऑस्ट्रिया में अपना इलाज कराने हेतु ठहरे हुए थे उस समय उन्हें अपनी पुस्तक लिखने हेतु एक अंग्रेजी जानने वाले टाइपिस्ट की आवश्यकता हुई। उनके एक मित्र ने एमिली शेंकल (अं: Emilie Schenkl) नाम की एक ऑस्ट्रियन महिला से उनकी मुलाकात करा दी। एमिली के पिता एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक थे। सुभाष एमिली की ओर आकर्षित हुए और उन दोनों में स्वाभाविक प्रेम हो गया। नाजी जर्मनी के सख्त कानूनों को देखते हुए उन दोनों ने सन् 1942 में बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया। वियेना में एमिली ने एक पुत्री को जन्म दिया। सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से चार सप्ताह की थी। उन्होंने उसका नाम अनिता बोस रखा था। अगस्त 1945 में ताइवान में हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में जब सुभाष की मौत हुई, अनिता पौने तीन साल की थी। अनिता अभी जीवित है। उसका नाम अनिता बोस फाफ  Anita Bose Pfaff है। अपने पिता के परिवार जनों से मिलने अनिता फाफ कभी-कभी भारत भी आती है।



प्रमुख भूमिका निभाने वाले नेताजी के बारे में जानकारी :- 

1913 : उन्‍होंने 1913 में अपनी कॉलेज शिक्षा की शुरुआत की और कलकत्‍ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया।
1915 : सन् 1915 में उन्‍होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्‍तीर्ण की।
1916 : ब्रिटिश प्रोफेसर के साथ दुर्व्‍यवहार के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया गया।

1917 : सुभाषचंद्र ने 1917 में स्‍कॉटिश चर्च कॉलेज में फिलॉसफी ऑनर्स में प्रवेश लिया।
1919 : फिलॉसफी ऑनर्स में प्रथम स्‍थान अर्जित करने के साथ आईसीएस परीक्षा देने के लिए इंग्‍लैंड रवाना हो गए।
1920 : सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक के साथ आईसीएस की परीक्षा न केवल उत्‍तीर्ण की, बल्‍कि चौथा स्‍थान भी प्राप्‍त किया।
1920 : उन्‍हें कैंब्रिज विश्‍वविद्यालय की प्रतिष्‍ठित डिग्री प्राप्‍त हुई।
1921 : अंग्रेजों ने उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया।
1922 : 1 अगस्‍त, 1922 को वे जेल से बाहर आए और देशबंधु चितरंजनदास की अगुवाई में गया कांग्रेस अधिवेशन में स्‍वराज दल में शामिल हो गए।


1923 : सन् 1923 में वे भारतीय युवक कांग्रेस के अध्‍यक्ष चुने गए। इसके साथ ही बंगाल कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। उन्‍होंने देशबंधु की स्‍थापित पत्रिका ‘फॉरवर्ड’ का संपादन करना शुरू किया।
1924 : स्‍वराज दल को कलकत्‍ता म्‍युनिसिपल चुनाव में भारी सफलता मिली। देशबंधु मेयर बने और सुभाषचंद्र बोस को मुख्‍य कार्यकारी अधिकारी मनोनीत किया गया। सुभाष के बढ़ते प्रभाव को अंग्रेज सरकार बरदाश्‍त नहीं कर सकी और अक्‍टूबर में ब्रिटिश सरकार ने एक बार फिर उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया।
1925 : देशबंधु का निधन हो गया।
1927 : नेताजी, जवाहरलाल नेहरू के साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के साधारण सचिव चुने गए।
1928 : स्‍वतंत्रता आंदोलन को धार देने के लिए उन्‍होंने भारतीय कांग्रेस के कलकत्‍ता अधिवेशन के दौरान स्‍वैच्‍छिक संगठन गठित किया। नेताजी इस संगठन के जनरल ऑफिसर-इन-कमांड चुने गए।
1930 : उन्‍हें जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के दौरान ही उन्‍होंने कलकत्‍ता के मेयर का चुनाव जीता।
1931 : 23 मार्च, 1931 को भगतसिंह को फांसी दे दी गई, जो कि नेताजी और महात्‍मा गांधी में मतभेद का कारण बनी।
1932-1936 : नेताजी ने भारत की आजादी के लिए विदेशी नेताओं से दबाव डलवाने के लिए इटली में मुसोलिनी, जर्मनी में फेल्‍डर, आयरलैंड में वालेरा और फ्रांस में रोमा रोनांड से मुलाकात की।
1936 : 13 अप्रैल, 1936 को भारत आने पर उन्‍हें बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया।
1936-37 : रिहा होने के बाद उन्‍होंने यूरोप में ‘इंडियन स्‍ट्रगल’ प्रकाशित करना शुरू किया।
1938 : हरिपुर अधिवेशन में कांग्रेस अध्‍यक्ष चुने गए। इस बीच शांति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्‍हें सम्‍मानित किया।
1939 : महात्‍मा गांधी के उम्‍मीदवार सीतारमैया को हराकर एक बार फिर कांग्रेस के अध्‍यक्ष बने। बाद में उन्‍होंने फॉरवर्ड ब्‍लॉक की स्‍थापना की।
1940 : उन्‍हें नजरबंद कर दिया गया। इस बीच उपवास के कारण उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
1941 : एक नाटकीय घटनाक्रम में वे 7 जनवरी, 1941 को गायब हो गए और अफगानिस्‍तान और रूस होते हुए जर्मनी पहुंचे।
1941 : 9 अप्रैल, 1941 को उन्‍होंने जर्मन सरकार को एक मेमोरेंडम सौंपा जिसमें एक्‍सिस पॉवर और भारत के बीच परस्‍पर सहयोग को संदर्भित किया गया था। सुभाषचंद्र बोस ने इसी साल नवंबर में स्‍वतंत्र भारत केंद्र और स्‍वतंत्र भारत रेडियो की स्‍थापना की।
1943 : वे नौसेना की मदद से जापान पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्‍होंने टोकियो रेडियो से भारतवासियों को संबोधित किया। 21 अक्‍टूबर, 1943 को उन्होंने आजाद हिन्‍द सरकार की स्‍थापना की और इसकी स्‍थापना अंडमान और निकोबार में की गई, जहां इसका 'शहीद और स्‍वराज' नाम रखा गया।
1944 : आजाद हिन्‍द फौज अराकान पहुंची और इम्फाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इम्फाल) को अपने कब्‍जे में ले लिया।
1945 : दूसरे विश्‍वयुद्ध में जापान ने परमाणु हमले के बाद हथियार डाल दिए। इसके कुछ दिनों बाद नेताजी की हवाई दुर्घटना में मारे जाने की खबर आई। हालांकि इस बारे में कोई प्रत्‍यक्ष प्रमाण नहीं प्राप्‍त हुए हैं।

सुभाष चन्द्र बोस का लापता होना या नेताजी की रहस्यमयी मृत्यु
नेताजी ने आजाद हिन्द फौज के विघटन के बाद देशवासियों के नाम संदेश में कहा –
“भारतीय स्वाधीनता संग्राम का पहला अध्याय पूरा हुआ और इस अध्याय में पूर्व एशियाई बेटे-बेटियों का स्थान अमिट रहेगा। हमारी अस्थाई असफलता से निराश न हो। दुनिया की कोई ताकत भारत को गुलाम नहीं रख सकती।”

उस समय के उपलब्ध सुत्रों के अनुसार ये कहा जाता हे कि रंगून में पराजय के बाद बैंकॉक लौटते समय से ही नेताजी ने सोवियत रुस जाने का निर्णय कर लिया था। 15 अगस्त 1945 को नेताजी ने अपनी अस्थाई सरकार के साथ अन्तिम बैठक की गयी जिसमें फैसला किया गया कि आबिद हसन, देवनाथ दास, नेताजी हबीबुर्रहमान, एस.ए.अय्यर और कुछ अन्य साथियों के साथ बोस टोकियों से चले जाये। ये लोग विमान से बैंकॉक और सैगोन रुकते हुये रुस के लिये गये।

सैगोन में नेताजी को बड़े जापानी विमान में बिठा दिया गया। नेताजी ने इस विमान से हबीबुर्रहमान के साथ यात्रा की। 18 अगस्त को ये लड़ाकू विमान से ताइवान के लिये गये और इसके बाद इनका विमान रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया। 23 अक्टूबर 1945 को टोकियों के रेडियो प्रसारण ने एक सूचना प्रसारित की कि ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान उड़ान भरते समय ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमें चालक और इनके एक साथी की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गयी और नेताजी आग से बुरी तरह झुलस गये। इन्हें वहाँ के सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया गया और इसी अस्पताल में इन्होंने अपने जीवन की आखिरी सांस ली।

बोस से जुड़ी कोई भी बात हो उनकी मृत्यु की गुत्थि का जिक्र जरूर होता है। आम थ्योरी कहती है कि बोस की मौत 1945 में एक प्लेन क्रैश में हो गई थी, लेकिन क्या ये सच्चाई है? उसके बाद भी कई लोगों ने ये दावा किया कि उन्होंने बोस को जिंदा देखा है. कुछ का कहना था कि बोस रशिया चले गए थे. इसी तरह का दावा करती है एक किताब "Bose: The Indian Samurai - Netaji and the INA Military Assessment". ये किताब सबसे पहले 2016 में पब्लिश की गई थी। इस किताब में लिखा गया है बोस प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. ये किताब लिखी है रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बक्शी ने।

किताब कहती है कि नेताजी प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे बल्कि ये थ्योरी जापान की इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा फैलाई गई थी ताकि नेताजी सीधे तौर पर भाग सकें. नेताजी इसके बाद सोवियत यूनियन भाग गए थे।
किताब के अनुसार सोवियत एम्बेसेडर जो टोकियो में थे उनकी मदद से बोस ने ये प्लान बनाया था. जेकब मलिक ने ही सर्बिया में आज़ाद हिंद सरकार की एम्बेसी सेट करने में मदद की थी।
जनरल बक्शी का कहना है कि उनके पास अखंडनीय सबूत हैं कि नेताजी 18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन बॉम्बर्स से बचने के लिए उस समय की सोवियत सरकार ने अपना बेस सर्बिया में शिफ्ट कर लिया था और जेकब मलिक की मदद से एम्बेसी रशिया में सेट की गई थी। बोस जब जापान से भागे तो उन्होंने सर्बिया से तीन रेडियो ब्रॉडकास्ट किए और उसी वक्त अंग्रेजों को पता चला कि बोस जिंदा हैं।
किताब के अनुसार ऐसे हुई मौत...
किताब के अनुसार बोस के जिंदा होने के सबूत मिलने पर ही ब्रिटिश सरकार ने सोवियत यूनियन की सरकार से ये विनती की थी कि उन्हें बोस से पूछताछ करने दी जाए। किताब के अनुसार पूछताछ के दौरान ही बोस को टॉर्चर किया गया और उस दौरान उनकी मौत हुई।
2016 में बोस के जन्मदिन के दौरान ही 100 से ज्यादा सीक्रेट फाइलें नरेंद्र मोदी द्वारा सार्वजनिक की गई थीं।
इनमें से दो के अनुसार नेताजी 18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में मारे गए थे और तीसरी रिपोर्ट जो जस्टिस एम के मुखर्जी की अध्यक्षता में बनी थी उसके अनुसार बोस जिंदा थे।
सरकार देती है ये जवाब..
पिछले साल एक RTI के जवाब में सरकार ने सीधी साधी थ्योरी बताई थी और कहा था कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताइवान के पास एक प्लेन क्रैश में हुई थी। तारीख थी 18 अगस्त 1945.
ये RTI सायक सेन ने फाइल की थी और मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स ने इसका जवाब दिया था।
किताब के अनुसार तो बोस की मृत्यु बाद में हुई थी और प्लेन क्रैश की थ्योरी सिर्फ अंग्रेजों को झांसा देने के लिए थी। बोस को लेकर कई राज़ अब भी बाकी हैं।
सुभाष चन्द्र बोस द्वारा लिखी गयी पुस्तकें
  • भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष।
  • आजाद हिन्द।
  • तरुनेर सपना।
  • अल्टरनेटिव लीडरशिप।
  • जरुरी कीचू लेखा।
  • द एसेंशशियल राइटिंग्स ऑफ सुभाष चन्द्र बोस।
  • 5th सुभाष चन्द्र बोस समग्र।
  • संग्राम रंचनाबली।
  • चलो दिल्ली: राइटिंग्स़ एंड स्पीच, 1943 -1945।
  • आइडियाज़ ऑफ ए नेशन: सुभाष चन्द्र बोस।
  • नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, द लास्ट फेस इन हिस ओन वर्ल्डस।
  • इंडियाज़ स्पोक मैन अब्रॉड: लेटर्स, आर्टिकल्स, स्पीचस़ एंड सेटलमेंट।
  • लाइफ एंड टाइम्स ऑफ सुभाष चन्द्र बोस, एज़ टोल्ड इन हिज़ ओन वर्ड्स।
  • सेलेक्टेड स्पीचस़।
  • सुभाष चन्द्र बोस एजेंडा फॉर आजाद हिन्द।
  • स्वतंत्रता के बाद भारत: सुभाष चन्द्र बोस के चुनिंदा भाषण।
  • तरुणाई के सपने।
  • एट द क्रॉस रोड़स़ ऑफ चेंज़।
सुभाष चन्द्र बोस के कथन या नारे –
  • “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा !”
  • “राष्ट्रवाद, मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् से प्रेरित है।”
  • “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही किया जा सकता है।”
  • “ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।”
  • “मध्या भावो गुडं दद्यात - अर्थात् जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड़ से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए!”
  • “भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी।”
  • “आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।”
  • “यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भाँति झुकना !”
  • “मुझे ये नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन-कौन जीवित बचेंगा! परन्तु मैं ये जानता हूँ, अंत में विजय हमारी ही होगी!”
  • “असफलताएँ कभी-कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं !”
  • “समझौतापरस्ती बहुत अपवित्र वस्तु है !”
  • “कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है !”
  • “मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है! दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता!”
  • “संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया! मुझमें आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ, जो पहले नहीं था!”
  • “समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो, या व्यक्ति की और उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है!”
  • “मैं जीवन की अनिश्चितता से जरा भी नहीं घबराता!”
  • “मुझमें जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी, परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही!”
  • “अपने कॉलेज जीवन की दहलीज़ पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ, जीवन का अर्थ भी है और उद्देश्य भी!”
  • “भविष्य अब भी मेरे हाथ में है!”
  • “चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है!”
  • “कर्म के बंधन को तोड़ना बहुत कठिन कार्य है!”
  • “माँ का प्यार सबसे गहरा और स्वार्थ रहित होता है! इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता!”
  • “याद रखिये अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है।”
  • “एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है।”
  • “इतिहास साक्षी है कि केवल विचार-विमर्श से कोई ठोस परिवर्तन नहीं हासिल किया गया है।”

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