कन्‍हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'


कन्‍हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' 
(सन् 1906-1995 ई.)


 कन्‍हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'  (सन् 1906-1995 ई.)जीवन-परिचय- कन्‍हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' का जन्‍म 21 मई 1906 ई. को सहारनपुर जनपद के देवबन्‍द नामक कस्‍बेे में हुआ था। इनके पिता श्री रमादत्त मिश्र पापिण्‍डत्‍य-कर्म करते थे। वे मधुर स्‍वभाव के सन्‍तोषी ब्राह्मण थे, 'प्रभाकर' जी की माता का स्‍वभाव बड़ा ही तेज था। घर की आर्थक परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण 'प्रभाकर' जी की प्रारम्भिक शिक्षा सुचारुरूपेण नहीं हो पायी। इन्‍होंने स्‍वाध्‍याय से ही हिन्‍दी, संस्‍कृत तथा अँग्रेजी आदि भाषाओं का गहन अध्‍ययन किया। बाद में वे खुर्जा के संस्‍कृत विद्यालय के विद्यार्थी बने, तभी इन्‍होंनेराष्‍ट्रीय नेता मौलाना आसफ अली का भाषण सुना, जिसके जादुई प्रभाव से वे परीक्षा त्‍यागकर देश-सेवा में संलग्‍न हो गये और तब से इन्‍होंने अपना सम्‍पूर्ण जीवन राष्‍ट्र-सेवा को समर्पित कर दिया।
'प्रभाकर' जी उदार, राष्‍ट्रवादी तथा मानवतावादी विचारधारा के व्‍यक्ति थे, अत: देश-प्रेम और मानवता के अनेक रूप उनकी रचनाओं में देखने को मिलते है। पत्रकारिता के क्षेत्र में इन्‍होंने निहित स्‍वार्थों को छोड़कर समाज में उच्‍च आदर्शों को स्‍थापित किया है। उन्‍होंने हिन्‍दी को नवीन शैल्‍ी-शिल्‍प से सुशोभित किया। इन्‍होंने संस्‍मरण, रेखाचित्र, यात्रा-वृत्तान्‍त, रिजोर्ताज अादि लिखकर साहित्‍य-संवर्द्धन किया है। 'नया जीवन' और 'विकास' नामक समाचार-पत्रारें के माध्‍यम से तत्‍कालीन राजनीतिक, सामाजिक, तथा शैक्षिक समस्‍याओं पर इनके निर्भीक एवं आशावादी विचारों का परिचय प्राप्‍त होता है। 9 मई 1995 ई. को इनका देहान्‍त हो गया।

कृतियॉं-
'प्रभाकर' जी की प्रमुख कृतियॉं है।
  • धरती के फूल
  • आकाश के तारे 
  • जिन्‍दगी मुस्‍कुराई 
  • भूले-बिसरे चेहरे
  • दीप जले शंख बजे
  • माटी हो गयी सोना
  • मह‍के ऑंगन चहके द्वार
  • बाजे पयालियाके घूँघरू
  • क्षण बोले कण मुस्‍काये 
  • रॉबर्ट नर्सिंग होम में



भाषा-शैली-
कन्‍हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' की भाषा में अद्भुत प्रवाह विद्यमान है। इनकी भाषा में मुहावरों एवं उक्त्यिों का सहज प्रयोग हुआ है। आलंकारिक भाषा से इनकी रचनाऍं कविता जैसा सौन्‍दर्य प्राप्‍त कर गयी है। इनके वाकय छोटे-छोटे एवं सुसंगठित है, जिनमें सूक्तिसम संक्षिप्‍तता तथा अर्थ-माम्‍भीर्य है। इनकी भाषा में व्‍यंग्‍यात्‍म्‍कता, सरलता, मार्मिकता, चुटीलापन तथा भावाभिव्‍यक्ति की क्षमता है।
'प्रभाकर' जी हिन्‍दी के मौलिक शैल्‍ीकार है1 इनकी गद्य-शेैली चार प्रकार की है 
  • भावात्‍मक शैली
  • वर्णनात्‍मक शैली 
  • नाटकीय शैली 
  • चित्रात्‍मक शैली 


कन्‍हैयालाल किश्र 'प्रभाकर' हिन्‍दी साहित्‍य की निबन्‍ध विधा के स्‍तम्‍भ है। अपनी अद्वितीय भाषा-शैली के कारण वे एक महान गद्यकार है। राष्‍ट्रीय आन्‍दोलनों के प्रतिभागी एवं साहित्‍य के प्रति समर्पित साधकों में 'प्रभाकर' जी का विशिष्‍ट स्‍थान है। इन्‍होंने हिन्‍दी में लधुकथा, संस्‍मरण, रेखाचित्र तथा रिपोर्ताज आदि विधाओं का प्रवर्तन किया है। वे जीवनपर्यन्‍त एक आदर्शवादी पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं।

14 टिप्‍पणियां:

  1. Sir 12th class ke Hindi book MA to inke death 1995 da Rakhi h aap btao ke ham board exam MA kon se death likha

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  2. Ye samaj nhi a rha 21 may ko inka janm hua aur 9may 1915 ko inka dehant ho gya

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