सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'
(सन् 1911-1987 ई.)
'अज्ञेय' जी
जीवन-परिचय- पं. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'ओय' का जन्म सन् 1911 र्इ्र. में लाहौर के करतापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. हीरानन्द शास्त्री सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे। जिता का बार-बार स्थानान्तरण होने के कारण 'ओय' जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने फारसी ओर अँग्रेजी का अध्ययन घर पर ही किया । गद्रास तािा लाहौर से इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। विज्ञान सनातक होने के बाद जब वे एम.ए. कर रहे थे तभी क्रान्तिकारी षड्यन्त्रों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए ओर सन् 1930 से 1934 ई. तक कारागार में रहे। बाद में एक वष्र इन्हें घर में ही नजरबन्द रहना पड़ा। सन् 1943-1946 ई. में इनहोंने सेना में भर्ती होकर असम-बर्मा सीमा पर और युद्ध समाप्त हो जाने पर पंजाब-पश्चिमोत्तर सीमा पर एक सैनिक के रूप में सेवा की। सन् 1955 ई. में वे यूनेस्कों की वृत्ति प्राप्त कर यूरोप चले गये। सन् 1943 ई. में 'तार-सप्तक' का प्रकाशन करके हिन्दी विता में नवीन आन्दोलन चलाया। इनके उपन्यास ओर कहानियॉं उच्च कोटि की है। पत्रकार के रूप में इनहें पर्याप्त सम्मान मिला । 4 अप्रैल 1987 ई. को इनका देहान्त हो गया। वे प्रयोगवाद के प्रवर्त्तक तथा समर्थ साहित्यकार थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी प्रतिभा गद्य-क्षेत्र में नवीन प्रयोगों में दिखायी देती है।
कृतियाँ-
'अज्ञेय' जी की प्रमुख कृतियॉं है।
- निबन्ध-संग्रह- त्रिशंकु, आत्मनेपद, सब रंग और कुछ राग, लिखि कागद कोरे, अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली
- समीक्षा-ग्रन्थ- हिन्दी साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य, तारसप्तकों की भूमिकाऍं
- कहानी-संग्रह- परम्परा, विपथगा, शरर्णाथी जयदोल, कोठरी की बात , तेरे ये प्रतिरूप, उमर वललरी
- उपन्यास- नदी के द्वीप, शेखन: एक जीवनी, अपने-अपने अजनबी
- नाटक- उत्तरप्रियदर्शी
- काव्य- ऑंगन के पार द्वार, अरी ओ करुुणा प्रभामय, हरी घास पर क्षणीार, इन्द्रधनुष रौंदे हुए से, सुनहरे शैवाल, बाबरा अहेरी, इत्यलम्, कितनी नावों में कितनी बार, पूर्वा
भाषा-शैली-
कम-से-कम शब्दोंं के प्रयोग से 'अज्ञेय' जी ने सटीक अर्थ प्रदान किये हैं। इनकी भाषा विषय तथा प्रसंगानुयार बदलती रहती हैफ वे भाषा-शिल्पी थे ओर वे सदैव जीवन्त एवं संस्कारित भाषा-प्रयोग के पक्षधर रहे। इनकी शैली विविधरूपिणी है। इन्होंने शैली के क्षेत्र में भी नवीन प्रयोग किये हैं।
'अज्ञेय' जी ने नयी कविता तथा प्रयोगवाद के जनक के रूप में ख्याति प्राप्त की है। वे हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ साहित्यकारां में महत्तवपूर्ण स्थान रखते हैं। एक युग-प्रवर्त्तक साहितयकार के रूप में वें चिरस्मरणीय रहेंगे।
Please correction of words
जवाब देंहटाएंJanm devriva kasiya me
जवाब देंहटाएंBhaiya inke ghar jana h full address bata dijiye
हटाएंक्या आपने इनका जन्म स्थान सही बतलाया है???
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