श्याम सुन्दर दास
श्यामसुन्दरदास(सन् 1857-1945 ई.)
''मातृभाषा के प्रचारक, क्मिल बी0ए0 पास।
सौम्यशील निधान, बाबू श्यामसुन्दरदास।।''
साहित्यिक परिचय- हिनदी साहित्य में बाबू श्यामसुन्दरदास जी की प्रारम्भ से ही रुचि थी। द्विवेदी-युग में हिनदी भाषा के व्यापक परिष्कार के उपरान्त, उसमें गम्भीर एवं गहन साहित्य के स़जन का जो महायज्ञ प्रारम्भ हुआ, उसके प्रथम होता (आहुति देनेवाले) आज ही थे। हिन्दी भाषा एवं साहित्य की सेवा में रत आपने अपने मित्रों के सहयोग से 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना की। आपने अपने 50 वर्ष के साहित्यिक जीवन में उच्च शिक्षा हेतु पाठ्य-पुस्तकों की रचना करके, विश्वविद्यालय स्तर पर इस अभाव की पूर्ति की। आपने इतिहास, काव्यशास्त्र, भाषाविज्ञान, आलोचना आदि से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों की रचना की। वैाानिक आधार पर साहित्य की आलोचना का प्रारम्भ बाबू जी द्वारा ही हुआ था। इन दृष्टि से हिन्दी साहित्य युग-युगों तक आपका ऋणी रहेगा। अद्वितीय सहित्यिक सेवाओं के कारण ही आपको 'हिन्ीद साहित्य सम्मेंलन' प्रयाग द्वारा 'साहित्यवाचसपति' और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय 'डी.लिट्. 'की उपाधि से सम्मानित किया गया। अंग्रेजी सरकार ने भी आपको 'राय बहादूर' की पदवी प्रदान किया था।
कृतियॉं- श्यामसुनदरदास साहित्य-सेवा में आजीवन लगे रहे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की और बहुुत से ग्रन्थों का सम्पवादन भी किया।
इनकी प्रमुख कृतियॉं इस प्रकार हैं-
- निबन्ध-संग्रह - 'गद्य कुसुमावली' इनके श्रेष्ठ निबन्धों का संकलन है। 'नागरी प्रचारिणी' पत्रिका में भी इनके अनेक निबन्ध प्रकाशित हुए।
- समालोचना- 'गोस्वामी तुलसीदास', ' भारतेन्दु हरिश्चन्द्र'।
- समीक्षा ग्रन्थ - 'साहित्यालोचन', रूपक रहस्य'
- इतिहास- 'साहित्य का इतिहास' एवं 'कवियो की खोज आदि में हिन्दी साहित्य के विकास पर प्रकाश डला गया है।
- भाषाविज्ञान- अापने 'भाषाविज्ञान', 'हिन्दी भाषा का विकास', 'भाषा रहस्य' आदि ग्रन्थों की रचना करके हिन्दी में भाषाविज्ञान पर ग्रन्थों की रचना का मार्ग प्रशस्त किया। सम्पादन- आपने 'हिन्दी-कोविद-रत्नमाला', 'हिन्दी शब्द-सागर', 'वैज्ञानिक कोश', 'मनोरंजन पुस्तक-माला', 'नासिकेतोपख्यान', 'पृथ्वीराजरासो', 'इन्द्रावती', 'वनिताविनोद', 'छत्रप्रकाश', हम्मीररासो', शकुन्तला नाटक', 'दीनदयाल गिरि को ग्रन्थावली', 'मेघदूत', 'परमालरासो', 'रामचरितमानस', आदि ग्रन्थों का सम्पादन भी कियाा इसके अतिरिक्त विद्यालयों के लिए कई पाठ्य-पुस्तकों एवं 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका का भी सम्पादन किया।
भाषा-शैली- बाबू श्यामसुन्दरदास की भाषा शुद्ध परिष्कृत खड़ीबोली है। इन्होंने संस्कृत की कोमलकान्त पदावली का पर्याप्त प्रयोग किया है। इन्होंने उर्दू-फारसी का प्रयोग बहुत कम किया है। प्रचलित विदेशी शब्दों को भी इन्होंने हिन्दी जैसा बनाकर ही प्रयोग किया । बाबू जी ने पहली बार हिन्दी को इस योग्य बनाया कि वह किसी विदेशी भाषा की सहायक के बिना ही अपनी भाव-अभिव्यक्ति में पूर्ण समर्थ हो। इनकी शैली प्रांजन, गम्भीर और संयत है। अपने व्यक्तित्व के अनुरूप इन्होंने गम्भीर विषयों के प्रतिपादन में शैली की गम्भीरता को भी बनाये रखा है।
इन्होंने मुख्यत: - विचारात्मक
- गवेषणात्मक
- व्याख्यात्मक
- विवेचनात्मक
- भावाात्मक शैली को अपनाया है।
भाषा-
- संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली
Syamsundar ka janam 1875 mai hua tha 1857 mai nahi
जवाब देंहटाएं1875
हटाएं1875
हटाएंHello Shyam Sundar Das Ji ka Janam sun 1875 mein hua tha
जवाब देंहटाएंShyam sunder ji ka j
जवाब देंहटाएंnam 1875 me hua tha
Intarschool
जवाब देंहटाएंBahut acche trha se parichey dala h
जवाब देंहटाएंOye shayam sundar das ka janm 1875 me hua tha ye janm galt hai
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